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कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 4 प्रेमचन्द की कहानियाँ 4प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौथा भाग
यह कहकर उस जालिम ने मेरी पीठ पर एक कमची जोर से मारी। मैं तिलमिया गयी मालूम हुआ। कि किसी ने पीठ पर आग की चिरगारी रख दी। मुझसे जब्त न हो सका मॉँ बाप ने कभी फूल की छड़ी से भी न मारा था। जोर से चीखें मार मारकर रोने लगी। स्वाभिमान, लज्जा सब लुप्त हो गयी। कमची की डरावनी और रौशन असलियत के सामने और भावनाएं गायब हो गयीं। उन हिन्दू देवियों के दिल शायद लोहे के होते होंगे जो अपनी आन पर आग में कूद पड़ती थीं। मेरे दिल पर तो इस वक्त यही खयाल छाया हुआ था कि इस मुसीबत से क्यों कर छुटकारा हो? सईद तस्वीर की तरह खामोश खड़ा था। मैं उसकी तरफ फरियाद की आंखों से देखकर बड़े विनती के स्वर में बोली- सईद खुदा के लिए मुझे इस जालिम से बचाओ, मैं तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ, तुम मुझे जहर दे दो, खंजर से गर्दन काट लो लेकिन यह मुसीबत सहने की मुझमें ताब नहीं। उन दिलजोइयों को याद करो, मेरी मुहब्बत को याद करो, उसी के सदके इस वक्त मुझे इस अजाब से बचाओ, खुदा तुम्हें इसका इनाम देगा।
सईद इन बातों से कुछ पिघला। हसीना की तरह डरी हुई आंखों से देखकर बोला- जरीना मेरे कहने से अब जाने दो। मेरी खातिर से इन पर रहम करो।
ज़रीना तेर बदल कर बोली- तुम्हारी ख़ातिर से सब कुछ कर सकती हूं, गालियां नहीं बर्दाश्त कर सकती।
सईद- क्या अभी तुम्हारे खयाल में गालियों की काफी सजा नहीं हुई?
जरीना- तब तो आपने मेरी इज्जत की खूब कद्र की! मैंने रानियों से चिलमचियां उठवायी हैं, यह बेगम साहबा है किस ख्याल में? मैं इसे अगर कुछ छुरी से काटूँ तब भी इसकी बदजबानियों की काफ़ी सजा न होगी।
सईद- मुझसे अब यह जुल्म नहीं देखा जाता।
ज़रीना- आँखें बन्द कर लो।
सईद- जरीना, गुस्सा न दिलाओ, मैं कहता हूँ, अब इन्हें माफ़ करो।
ज़रीना ने सईद को ऐसी हिकारत-भरी आंखों से देखा गोया वह उसका गुलाम है। खुदा जाने उस पर उसने क्या मन्तर मार दिया था कि उसमें ख़ानदानी ग़ैरत और बड़ाई ओ इन्सानियत का ज़रा भी एहसास बाकी न रहा था। वह शायद उसे गुस्से जैसे मर्दानास जज्बे के क़ाबिल ही न समझती थी। हुलिया पहचानने वाले कितनी गलती करते हैं क्योंकि दिखायी कुछ पड़ता है, अन्दर कुछ होता है! बाहर के ऐसे सुन्दर रूप के परदे में इतनी बेरहमी, इतनी निष्ठुरता! कोई शक नहीं, रूप हुलिया पहचानने की विद्या का दुशमन है। बोली- अच्छा तो अब आपको मुझ पर गुस्सा आने लगा ! क्यों न हो, आखिर निकाह तो आपने बेगम ही से किया है। मैं तो हया-फरोश कुतिया ही ठहरी !
सईद- तुम ताने देती हो और मुझसे यह खून नहीं देखा जाता।
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