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गोस्वामी तुलसीदास

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :53
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9734
आईएसबीएन :9781613015506

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महाकवि तुलसीदास की पद्यात्मक जीवनी


[6]

लड़-लड़ जो रण बाँकुरे, समर,
हो शायित देश की पृथ्वी पर,
अक्षर, निर्जर, दुर्धर्ष, अमर, जगतारण
भारत के उर के राजपूत,
उड़ गये आज वे देवदूत,
जो रहे शेष, नृपवेश सुत-बन्दीगण।

[7]

यों मोगल-पद-तल प्रथम तूर्ण
सम्बद्ध देश-बल चूर्ण-चूर्ण
इसलाम कलाओं से प्रपूर्ण जन-जनपद
संचित जीवन की क्षिप्रधार,
इसलाम - सागराभिमुख पार,
बहती नदियाँ, नद जन-जन हार वंशवद।

[8]

अब धौत धरा खिल गया गगन,
उर-उर को मधुर तापप्रशमन
बहती समीर, चिर-आलिंगन ज्यों उन्मन।
झरते हैं शशधर से क्षण-क्षण
पृथ्वी के अधरों पर निःश्वन
ज्योतिर्मय प्राणों के चुम्बन, संजीवन।

[9]

भूला दुख, अब सुख-स्वरित जाल
फैला-यह केवल-कल्प काल--
कामिनी-कुमुद-कर-कलित ताल पर चलता।
प्राणों की छबि मृदु-मन्द-स्पन्द,
लघु-गति, नियमित-पद, ललित छन्द
होगा कोई, जो निरानन्द, कर मलता।

[10]

सोचता कहाँ रे, किधर कूल
कहता तरंग का प्रमुद फूल
यों इस प्रवाह में देश मूल खो बहता।
छल-छल-छल कहता यद्यपि जल,
वह मन्त्र मुग्ध सुनता कल-कल
निष्क्रिय शोभा-प्रिय कूलोपल ज्यों रहता।

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