ई-पुस्तकें >> गोस्वामी तुलसीदास गोस्वामी तुलसीदाससूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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महाकवि तुलसीदास की पद्यात्मक जीवनी
[71]
देखा वह नहीं प्रिया जीवन;
नत-नयन भवन, विषण्ण आँगन;
आवरण शून्य वे बिना वरण-मधुरा के
अपहृत-श्री सुख-स्नेह का सद्य,
निःसुरभि, हत, हेमन्त-पद्म !
नैतिक-नीरस, निष्प्रीति, छद्म ज्यों, पाते।
[72]
यह नहीं आज गृह, छाया-उर,
गीति से प्रिया की मुखर, मधुर;
गति-नृत्य, तालशिंजित-नूपुर चरणारुण;
व्यंजित नयनों का भाव सघन
भर रंजित जो करता क्षण-क्षण;
कहता कोई मन से, उन्मन, सुर रे, सुन।
[73]
वह आज हो गयी दूर तान,
इसलिए मधुर वह और गान,
सुनने को व्याकुल हुए प्राण प्रियतम के;
छूटा जग का व्यवहार - ज्ञान,
पग उठे उसी मग को अजान,
कुल-मान-ध्यान श्लथ स्नेह-दान-सक्षम से।
[74]
मग में पिक-कुहरिल डाल,
हैं हरित विटप सब सुमन - माल,
हिलतीं लतिकाएँ ताल-ताल पर सस्मित।
पड़ता उन पर ज्योतिः प्रपात,
हैं चमक रहे सब कनक-गात,
बहती मधु-धीर समीर ज्ञात, आलिंगित।
[75]
धूसरित बाल-दल, पुण्य-रेणु,
लख चरण-वारण-चपल धेनु,
आ गयी याद उस मधुर-वेणु-वादन की;
वह यमुना-तट, वह वृन्दावन,
चपलानन्दित यह सघन गगन;
गोपी-जन-यौवन-मोहन-तन वह वन-श्री।
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