ई-पुस्तकें >> गोस्वामी तुलसीदास गोस्वामी तुलसीदाससूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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महाकवि तुलसीदास की पद्यात्मक जीवनी
‘तुलसीदास में स्वाधीनता की भावना का पूर्ण प्रस्फुटन हुआ है। भारत के सांस्कृतिक सूर्य के अस्त होने पर देश में किस तरह अंधकार छाया हुआ है, इसका मार्मिक चित्रण करते हुए निराला ने दिखलाया है कि किस प्रकार एक कवि इस अंधकार को दूर करने की चेष्टा करता है। तुलसीदास के रुप में निराला ने आधुनिक कवि के स्वाधीनता-संबंधी भावों के उद्गम और विकास का चित्रण किया है। छायावादी कवि की तरह निराला के तुलसीदास को भी देश की पराधीनता का बोध प्रकृति की पाठशाला में ही होता है; किंतु छायावादी कवि की तरह वे भी कुछ दिनों के लिए नारी-मोह में पड़कर उस भाव को भूल जाते हैं। अंत में जो ज्ञान प्रकृति की पाठशाला में मिला था, उसका दीक्षांत भाषण उसी नारी के विश्व-विद्यालय में सुनने को मिलता है, और भविष्यवाणी होती है कि -
देश-काल का शर से बिंधकर
यह जागा कवि अशेष छविधर
इसके स्वर से भारती मुखर होयेंगी।
इस तरह हिंदी जाति के सबसे बड़े जातीय कवि की जीवन-कथा के द्वारा निराला ने अपनी समसामयिक परिस्थितियों में रास्ता निकालने का संकेत दिया है।
गोस्वामी तुलसीदास
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