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वेताल पचीसी

वेताल भट्ट

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9733
आईएसबीएन :9781613012185

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सदियों से प्रसिद्ध वेताल और राजा विक्रमादित्य की मनोहारी कथा

बहुत सोच-विचार के बाद राजा ने दोनों का विवाह कर दिया। बनावटी कन्या ने यह शर्त रखी कि चूँकि वह दूसरे के लिए लायी गयी थी, इसलिए उसका यह पति छ: महीने तक यात्रा करेगा, तब वह उससे बात करेगी। दीवान के लड़के ने यह शर्त मान ली।

विवाह के बाद वह उसे मृगांकदत्ता के पास छोड़ तीर्थ-यात्रा चला गया। उसके जाने पर दोनों आनन्द से रहने लगे। ब्राह्मणकुमार रात में आदमी बन जाता और दिन में कन्या बना रहता।

जब छ: महीने बीतने को आये तो वह एक दिन मृगांकदत्ता को लेकर भाग गया।

उधर सिद्धगुरु एक दिन अपने मित्र शशि को युवा पुत्र बनाकर राजा के पास लाया और उस कन्या को माँगा।

शाप के डर के मारे राजा ने कहा, “वह कन्या तो जाने कहाँ चली गयी। आप मेरी कन्या से इसका विवाह कर दें।”

वह राजी हो गया और राजकुमारी का विवाह शशि के साथ कर दिया।

घर आने पर ब्राह्मणकुमार ने कहा, “यह राजकुमारी मेरी स्त्री है। मैंने इससे गंधर्व-रीति से विवाह किया है।”

शशि ने कहा, “यह मेरी स्त्री है, क्योंकि मैंने सबके सामने विधि-पूर्वक ब्याह किया है।”

वेताल ने पूछा, “राजकुमारी दोनों में से किस की पत्नी है?”

राजा ने कहा: मेरी राय में वह शशि की पत्नी है, क्योंकि राजा ने सबके सामने विधिपूर्वक विवाह किया था। ब्राह्मणकुमार ने तो चोरी से ब्याह किया था। चोरी की चीज़ पर चोर का अधिकार नहीं होता।

इतना सुनना था कि वेताल गायब हो गया और राजा को जाकर फिर उसे लाना पड़ा। रास्ते में वेताल ने फिर एक कहानी सुनायी।

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