ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
मेजर रशीद एक साहसी और जोशीला पाकिस्तानी फ़ौजी अफ़सर था। युद्ध-विराम से उसके सीने में सुलगती आग अभी ठंडी नहीं हुई थी। उसकी वे तमन्नाएं, जो शांति की संधि से पूरी न हो सकी थीं, कैप्टन रणजीत को देखकर उसके सीने में उभरने लगी थीं।
अचानक हवा से फड़फड़ाते कागज़ की आवाज़ ने उसके विचारों की श्रृंखला को काट दिया। यह क्लिप में लगे उस कागज़ की आवाज़ थी जो आज ही शाम की डाक से आया था। उसकी, प्रियतमा सलमा का प्यार भरा पत्र, युद्ध के तूफ़ान में भी उसे ढूंढता हुआ उसके पास पहुंच जाता था और उसे याद दिलाता रहता था कि वह केवल अपने लिए नहीं, किसी और के लिए भी जी रहा है। उसने हवा से फड़फड़ाते हुए पत्र को क्लिप से निकाला और पढ़ने लगा-
''786
मेरे सरताज! प्यार भरा सलाम!
याद रहे अगले बुद्ध का दिन और तारीख। खाली सफ़हे पर मत जाइए...। आपके बग़ैर मेरी ज़िन्दगी भी इस सफ़हे की तरह खाली है।
आपकी मुन्तज़र
सलमा''
इन चन्द शब्दों को रशीद ने बार-बार पढ़ा और फिर उस पुर्ज़े को अपने होंठों से लगा लिया।
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