ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
सलमा ने रशीद की आवाज़ पहचान ली और दीवार की ओर हाथ बढ़ाकर उसने कमरे में प्रकाश करना चाहा...किन्तु रशीद ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला-''नहीं...अंधेरा ही रहने दो...''
''क्यों? क्या बात है? आप इस कदर घबराए हुए क्यों हैं? खैरियत तो है? और आप आए कब?'' सलमा ने घबराकर पूछा।
''आज ही आया हूं...'' कहकर रशीद ने एक सिगरेट सुलगा लिया।
''लेकिन इस तरह...अंधेरे में...चोरों की तरह...'' कहते हुए सलमा ने उसके पसीने से भरे चेहरे पर हाथ फेरा और कुछ रुककर बोली, ''कहां से भागकर आ रहे हैं आप''।
''भागकर नहीं...भगाकर आ रहा हूं।''
''भगाकर...? किसको?''
''रणजीत को...जानती हो सलमा...वह मेरा भाई है...सगा भाई।''
''क्या बहकी-बहकी बातें कर रहे हैं आप?'' वह आश्चर्य से उसे देखती हुई बोली।
''यकीन करो...मैं ठीक कह रहा हूं...तुम हैरान थीं ना कि दो अजनबी आदमियों की सूरतें इतनी ज्यादा कसे मिल सकती हैं...रणजीत अजनबी नहीं...मेरा जुड़वां भाई है...हिंदोस्तान के बंटवारे के वक्त हम दोनों भाई बिछुड़ गए थे...ओह...आज मैं किस कदर खुश हूं...अपने भाई को क़ैद से आज़ाद करके मेरे सीने से एक बहुत भारी बोझ हट गया है।''
''ओह...! यह आपने क्या किया? कानून और वतन आपको कभी मुआफ़ नहीं करंगें।''
''मैं जानता हूं...और यह भी जानता हूं कि इसकी सजा मुझे नहीं बल्कि तुम्हें मिलेगी...जिस औरत के हाथों की मेंहदी का रंग भी अभी फीका न पड़ा हो...जिसके कानों में अभी बाबुल के गीत गूंज रहे हों... 'जिसका अभी कोई ख्वाब पूरा न हुआ हो...मैं उसकी ज़िन्दगी को एक दर्द भरी चीख़ बनाकर छोड़े जा रहा हूं...कितनी बड़ी नाइन्साफ़ी होगी तुम्हारे साथ सलमा...कितनी बड़ी नाइन्साफ़ी।''
''बस कीजिए...खुदा के लिए बस कीजिए-'' वह एकाएक चिल्लाकर पलट पड़ी तोँ रशीद ने आगे बढ़कर उसके दोनों हाथ थाम लिए और भर्राई हुई आवाज़ में बोला-''नहीं सलमा...मुझसे दूर मत जाओ...मेरे पास वक़्त बहुत कम है...मेरी ज़िंदगी की मज़बूरी को समझो और मुझसे वादा करो कि यह सबकुछ तुम एक फ़ौजी अफ़सर की बहादुर बीवी की तरह बर्दाश्त कर लोगी।''
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