ई-पुस्तकें >> श्रीबजरंग बाण श्रीबजरंग बाणगोस्वामी तुलसीदास
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शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास
आरती
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरिवर कांपै।
रोग-दोष जाके निकट न झांपै।।
अंजनि पुत्र महा बलदाई।
संतन के प्रभु सदा सहाई।।
दे बीरा रघुनाथ पठाए।
लंका जारि सिया सुधि लाये।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई।।
लंका जारि असुर संहारे।
सियाराम जी के काज संवारे।।
लक्ष्मण मूर्च्छित परे सकारे।
लाय संजीवन प्रान उबारे।।
पैठि पताल तोरि जमकारे।
अहिरावन की भुजा उखारे।।
बाईं भुजा असुर संहारे।
दाईं भुजा संत जन तारे।।
सुर नर मुनि आरती उतारें।
जय जय जय हनुमान उचारें।।
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरति करत अंजना माई।।
जो हनुमान जी की आरति गावे ।
बसि बैकुण्ठ परमपद पावे ।।
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