लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> सिंहासन बत्तीसी

सिंहासन बत्तीसी

वर रुचि

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :101
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9721
आईएसबीएन :9781613012284

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

137 पाठक हैं

सिंहासन बत्तीसी 32 लोक कथाओं का ऐसा संग्रह है, जिसमें विक्रमादित्य के सिंहासन में लगी हुई 32 पुतलियाँ राजा के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।

तीसरी पुतली चन्द्रकला

एक दिन राजा विक्रमादित्य नदी के किनारे अपने महल में बैठे गाना सुन रहे थे। उनका मन संगीत के रस में डूबा हुआ था। इतने में एक आदमी गुस्सा होकर अपनी स्त्री और बच्चे के साथ घर से निकला और वे सब-के-सब नदी में कूद पड़े। जब वे डूबने लगे तो उन्होंने पुकारा कि है कोई धर्मात्मा है, जो हमें निकाले! आदमी बहुत 'हाय-हाय' कर रहा था और अपनी करनी पर पछता रहा था। तभी राजा के आदमियों ने राजा को खबर दी।

वे दौड़े आये। आदमी हैरान होकर कह रहा था कि है कोई ईश्वर का, बंदा जो हमें पार लगाये! राजा वहां आया और उन लोगों को डूबते देख स्वयं नदी में कूद पड़ा। पानी में आगे बढ़कर उसने स्त्री और बच्चे का, हाथ पकड़ लिया। तभी वह आदमी भी राजा से लिपट गया। राजा घबराया। उनके साथ वह भी डूबने लगा। उसी समय उसे अपने दोनों वीरों की याद आयी। याद आते ही वे दोनों वहां आ गये और चारों को बाहर निकाल लाये।

वह आदमी राजा के पैरो पर गिर पड़ा और बोला, "महाराज! आपने हमारी जान बचाई है, आप हमारे भगवान हो।"

राजा ने कहा, “बचाने वाला तो ईश्वर है और बहुत-सा धन देकर उन्हें विदा किया।”

पुतली बोली, “हे राजन्! इतने हिम्मत वाले हो तो सिंहासन पर बैठो।”

मुहूर्त टल गया। अगले दिन राजा सिंहासन पर बैठने के लिए आया तो चंद्रावली नाम की चौथी पुतली ने उसे रोका और कहा कि पहले मेरी बात सुन लो।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai