ई-पुस्तकें >> सिंहासन बत्तीसी सिंहासन बत्तीसीवर रुचि
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सिंहासन बत्तीसी 32 लोक कथाओं का ऐसा संग्रह है, जिसमें विक्रमादित्य के सिंहासन में लगी हुई 32 पुतलियाँ राजा के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।
पच्चीसवीं पुतली त्रिनेत्री
एक गरीब भाट था। उसकी कन्या ब्याह के योग्य हुई तो उसने सारी दुनिया के राजाओं के यहां चक्कर लगाये, लेकिन किसी ने भी उसे एक कौड़ी न दी। तब वह राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचा और उसे सब हाल कह सुनाया। राजा ने तुरंत उसे दस लाख रुपये और हीरे, लाल, मोती और सोने-चांदी के गहने थाल भर-भरकर दिये। ब्राह्मण ने सब कुछ ब्याह में खर्च कर डाला। खाने को भी अपने पास कुछ न रक्खा।
पुतली बोली, “इतने दानी हो तो सिंहासन पर बैठो।”
राजा की हैरानी बहुत बढ़ गई। रोज कोई-न-कोई बाधा पड़ जाती थी।
अगले दिन उसे छब्बीसवीं पुतली ने रोका और बोली, "पहले विक्रमादित्य की तरह यश कमाओ, तब सिंहासन पर बैठना।"
इतना कहकर उसने सुनाया।
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