ई-पुस्तकें >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
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मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह
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मंज़िल पे पहुँचने का इरादा नहीं बदला
मंज़िल पे पहुँचने का इरादा नहीं बदला।
घबराये तो हम भी कभी रस्ता नहीं बदला।।
गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं यहाँ लोग,
हमने तो कभी खेल में पाला नहीं बदला।
कहते हैं भला आप ज़माने को बुरा क्यों,
हम-आप ही बदले हैं ज़माना नहीं बदला।
है चाँद वही, चाँद की तासीर वही है,
सूरज जो लुटाता है उजाला नहीं बदला।
ख़ुदगर्ज़ी में तब्दील हुए हैं सभी रिश्ते,
है एक मुहब्बत का जो रिश्ता नहीं बदला।
बाँहों में रहा चाँद हमारी, ये सही है,
क़िस्मत का मगर कोई सितारा नहीं बदला।
सब लफ़्ज़ बदल बैठे जहाँ अपने मआनी,
अब सोचो नये दौर में क्या-क्या नहीं बदला।
लफ़्ज़ों को बरतने का हुनर सीख रहा हूँ,
लफ़्फ़ाज़ी नहीं की है तो लहजा नहीं बदला।
कहते हैं मेरे चाहने वाले यही अक्सर,
‘राजेन्द्र’ है वैसा ही ज़रा सा नहीं बदला।
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