ई-पुस्तकें >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
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मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह
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आदमी को आदमी से डर भला क्योंकर लगा
आदमी को आदमी से डर भला क्योंकर लगा।
तब ये जाना जब हमारी पीठ पर ख़ंजर लगा।।
आस्तीनी साँप से मुमकिन था बच जाते मगर,
हर गली इक आस्तीं, हर आदमी विषधर लगा।
जिस्म बेचा, रूह बेची, ख़्वाब तक बेचे कभी,
भूख के बाज़ार में हर शख़्स पेशेवर लगा।
वाह रे इंसाफ़ उनका वाह रे उनका निज़ाम,
जुर्म किसका था मगर इल्ज़ाम किसके सर लगा।
मैं सफ़र में शाम को ठहरा जहाँ पर भी वहीं,
लोग अपने से लगे वो गाँव अपना घर लगा।
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