ई-पुस्तकें >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
|
4 पाठकों को प्रिय 258 पाठक हैं |
मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह
84
अगर पी है तो पीकर लड़खड़ाना क्या ज़रूरी है
अगर पी है तो पीकर लड़खड़ाना क्या ज़रूरी है।
मुहब्बत दिल से होती है दिखाना क्या ज़रूरी है।।
सुनायें ग़ैर को दिल का फ़साना क्या ज़रूरी है,
बना लें बे-सबब ख़ुद को निशाना क्या ज़रूरी है।
हमें लगता है ख़ुद पर ही यक़ीं तुमको नहीं शायद,
यक़ीं हम पर है तो फिर आज़माना क्या ज़रूरी है।
मुहब्बत में चलो हम बोझ बाँटें एक-दूजे का,
मुहब्बत में अजी नखरे उठाना क्या ज़रूरी है।
अंधेरा दूर करना है, चराग़ों को जलाएं हम,
उजाले के लिये दिल को जलाना क्या ज़रूरी है।
फ़क़ीरों के लिये सारा जहाँ होता है घर जैसा,
कलंदर का कहीं हो आशियाना क्या ज़रूरी है।
ग़ज़ल कहने से पहले फ़न समझना ठीक है, लेकिन,
ग़ज़ल पढ़ने से पहले गुनगुनाना क्या ज़रूरी है।
सुना है सर पे चढ़ कर बोलता है हुस्न का जादू,
मगर ‘राजेन्द्र’ हो जाये दिवाना क्या ज़रूरी है।
|