ई-पुस्तकें >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
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मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह
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ज़ुल्फ़, आँचल, अब्र, हम पर मेहरबाँ कोई न था
ज़ुल्फ़, आँचल, अब्र, हम पर मेहरबाँ कोई न था।
आग की बारिश थी सर पर, सायबाँ कोई न था।।
किससे कहते, कौन सुनता दास्तां, कोई न था,
हमसफ़र थे लोग लेकिन हमज़बाँ कोई न था।
कोई दर खुलता, मुसाफ़िर को कहीं मिलती पनाह,
सारी बस्ती में, कहीं ऐसा मकाँ कोई न था।
कैसी मजबूरी थी, जिसने लब नहीं खुलने दिये,
यूँ हमारे और उसके दरमियाँ, कोई न था।
रास्ते बेताब थे, क़दमों की आहट के लिये,
मुंतज़िर थीं मंज़िलें, पर कारवाँ कोई न था।
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