लोगों की राय
ई-पुस्तकें >>
श्रीकान्त
श्रीकान्त
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :598
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
|
पुस्तक क्रमांक : 9719
|
आईएसबीएन :9781613014479 |
 |
|
7 पाठकों को प्रिय
337 पाठक हैं
|
शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास
अकस्मात् मेरे ठीक पीछे से एक 'हुम्' शब्द और साथ ही साथ छोटे भइया और जतीन भइया का आर्तकण्ठ से निकला हुआ, “अरे बाप रे! मार डाला रे' का गगनभेदी चीत्कार सुन पड़ा। उन्हें किसने मार डाला, सिर घुमाकर यह देखने के पहले ही, मँझले भइया ने सिर उठाकर विकट शब्द किया और बिजली की तेजी से सामने पैर फैला दिए, जिससे दीवट उलट गया। तब उस अन्धकार में 'दक्ष-यज्ञ' मच गया। मँझले भइया को थी मिर्गी की बीमारी, इसलिऐ वे 'ओं-ओं' करके दीवट उलटाकर जो चित्त गिरे सो फिर न उठे।
ठेलठाल करके मैं बाहर निकला तो देखा कि फूफाजी अपने दोनों लड़कों को बगल में दबाए हुए, उनसे भी अधिक तीव्र स्वर में चिल्लाकर छप्पर फाड़े डाल रहे हैं। ऐसा लगता था मानो उन तीनों बाप-बेटों में इस बात की होड़ लगी हुई है कि कौन कितना गला फाड़ सकता है।
इसी अवसर पर एक चोर जी छोड़कर भागा जा रहा था और डयोढ़ी के सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया था। फूफाजी प्रचण्ड चीत्कार करके हुक्म दे रहे थे, “और मारो, साले को, मार डालो।” इत्यादि।
दम भर में रोशनी हो गयी, नौकर-चाकरों और पास-पड़ोसियों से आँगन खचाखच भर गया। दरबानों ने चोर को मारते-मारते अधमरा कर दिया और प्रकाश के सम्मुख खींच लाकर, धक्का देकर गिरा दिया। पर चोर का मुँह देखकर घर-भर के लोगों का मुँह सूख गया - अरे, ये तो भट्टाचार्य महाशय हैं!
तब कोई तो जल ले आया, कोई पंखे से हवा करने लगा, और कोई उनकी आँखों और मुँह पर हाथ फेरने लगा। उधर घर के भीतर मँझले भइया के साथ भी यही हो रहा था।
...Prev | Next...
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai