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रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा

रामप्रसाद बिस्मिल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :216
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9718
आईएसबीएन :9781613012826

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प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बिस्मिल जी की आत्मकथा

मैं इस समय इस परिणाम पर पहुंचा हूं कि यदि हम लोगों ने प्राणपण से जनता को शिक्षित बनाने में पूर्ण प्रयत्ना किया होता, तो हमारा उद्योग क्रान्तिकारी आन्दोलन के कहीं अधिक लाभदायक होता, जिसका परिणाम स्थायी होता। अति उत्तम होगा यदि भारत की भावी सन्तान तथा नवयुवकवृन्द क्रान्तिकारी संगठन करने की अपेक्षा जनता की प्रवृत्ति को देश सेवा की ओर लगाने का प्रयत्नन करें और श्रमजीवी तथा कृषकों का संगठन करके उनको जमींदारों तथा रईसों के अत्याचारों से बचाएं। भारतवर्ष के रईस तथा जमींदार, सरकार के पक्षपाती हैं। मध्य श्रेणी के लोग किसी न किसी प्रकार इन्हीं तीनों के आश्रित हैं। कोई तो नौकरपेशा हैं और जो कोई व्यवसाय भी करते हैं, उन्हें भी इन्हीं के मुंह की ओर ताकना पड़ता है। रह गये श्रमजीवी तथा कृषक, सो उनको उदरपूर्ति के उद्योग से ही समय नहीं मिलता जो धर्म, समाज तथा राजनीति के ओर कुछ ध्यान दे सकें। मद्यपानादि दुर्व्यसनों के कारण उनका आचरण भी ठीक नहीं रह जाता। व्यभिचार, सन्तान वृद्धि, अल्पायु में मृत्यु तथा अनेक प्रकार के रोगों से जीवन भर उनकी मुक्तिण नहीं हो सकती।

कृषकों में उद्योग का तो नाम भी नहीं पाया जाता। यदि एक किसान को जमींदार की मजदूरी करने या हल चलाने की नौकरी करने पर ग्राम में आज से बीस वर्ष पूर्व दो आने रोज या चार रुपये मासिक मिलते थे, तो आज भी वही वेतन बंधा चला आ रहा है ! बीस वर्ष पूर्व वह अकेला था, अब उसकी स्त्रीक तथा चार सन्तान भी हैं पर उसी वेतन में उसे निर्वाह करना पड़ता है। उसे उसी पर सन्तोष करना पड़ता है। सारे दिन जेठ की लू तथा धूप में गन्ने के खेत में पाने देते उसको रतौन्धी आने लगती है। अंधेरा होते ही आंख से दिखाई नहीं देता, पर उसके बदले में आधा सेर सड़े हुए शीरे का शरबत या आधा सेर चना तथा छः पैसे रोज मजदूरी मिलती है, जिसमें ही उसे अपने परिवार का पेट पालना पड़ता है।

जिनके हृदय में भारतवर्ष की सेवा के भाव उपस्थित हों या जो भारतभूमि को स्वतंत्र देखने या स्वाधीन बनाने की इच्छा रखता हो, उसे उचित है कि ग्रामीण संगठन करके कृषकों की दशा सुधारकर, उनके हृदय से भाग्य-निर्माता को हटाकर उद्योगी बनने की शिक्षा दे। कल कारखाने, रेलवे, जहाज तथा खानों में जहां कहीं श्रमजीवी हों, उनकी दशा को सुधारने के लिए श्रमजीवियों के संघ की स्थापना की जाए, ताकि उनको अपनी अवस्था का ज्ञान हो सके और कारखानों के मालिक मनमाने अत्याचार न कर सकें और अछूतों को, जिनकी संख्या इस देश में लगभग छः करोड़ है, पर्याप्ती शिक्षा प्राप्त् कराने का प्रबन्ध हो तथा उनको सामाजिक अधिकारों में समानता मिले। जिस देश में छः करोड़ मनुष्य  अछूत समझे जाते हों, उस देश के वासियों को स्वाधीन बनने का अधिकार ही क्या है?

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