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रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा

रामप्रसाद बिस्मिल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :216
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9718
आईएसबीएन :9781613012826

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प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बिस्मिल जी की आत्मकथा

किले में हम लोग जब पण्डित जी से मिले, तब चिट्ठी भेजकर उन्होंने हमको सब हाल बताया। एक दिन किले में हम लोगों पर भी सन्देह हो गया था, बड़ी कठिनता से एक अधिकारी की सहायता से हम लोग निकल सके।

जब मैनपुरी षड्यन्त्र का अभियोग चला, पण्डित गेंदालालजी को सरकार ने ग्वालियर राज्य से मँगाया। ग्वालियर के किले का जलवायु बड़ा ही हानिकारक था। पण्डित जी को क्षय रोग हो गया था। मैनपुरी स्टेशन से जेल जाते समय ग्यारह बार रास्ते में बैठ कर जेल पहुंचे। पुलिस ने जब हाल पूछा तो उन्होंने कहा - "बालकों को क्यों गिरफ्तार किया है? मैं हाल बताऊँगा।" पुलिस को विश्वा स हो गया। आपको जेल से निकाल कर दूसरे सरकारी गवाहों के निकट रख दिया। वहाँ पर सब विवरण जान रात्रि के समय एक और सरकारी गवाह को लेकर पण्डित जी भाग खड़े हुए। भाग कर एक गांव में एक कोठरी में ठहरे। साथी कुछ काम के लिए बाजार गया और फिर लौट कर न आया, बाहर से कोठरी की जंजीर बन्द कर गया। पण्डित जी उसी कोठरी में तीन दिन बिना अन्न-जल बन्द रहे। समझे कि साथी किसी आपत्ति में फंस गया होगा, अन्त में किसी प्रकार जंजीर खुलवाई। रुपये वह साथ ही ले गया था। पास एक पैसा भी न था। कोटा से पैदल आगरा आए। किसी प्रकार अपने घर पहुँचे। बहुत बीमार थे। पिता ने यह समझ कर कि घर वालों पर आपत्ति न आए, पुलिस को सूचना देनी चाही। पण्डित जी ने पिता से बड़ी विनय-प्रार्थना की और दो-तीन दिन में घर छोड़ दिया।

हम लोगों की बहुत खोज की। किसी का कुछ पता न पाया, दिल्ली में एक प्याऊ पर पानी पिलाने की नौकरी कर ली। अवस्था दिनों दिन बिगड़ रही थी। रोग भीषण रूप धारण कर रहा था। छोटे भाई तथा पत्नी  को बुलाया। भाई किंकर्त्तव्यविमूढ़ ! वह क्या कर सकता था? सरकारी अस्पताल में भर्ती कराने ले गया। पण्डित जी की धर्मपत्नी  को दूसरे स्थान में भेजकर जब वह अस्पताल आया, तो जो देखा उसे लिखते हुए लेखनी कम्पायमान होती है ! पण्डित जी शरीर त्याग चुके थे। केवल उनका मृत शरीर मात्र ही पड़ा हुआ था। स्वदेश की कार्य-सिद्धि में पं० गेंदालाल जी दीक्षित ने जिस निःसहाय अवस्था में अन्तिम बलिदान दिया, उसकी स्वप्न् में भी आशंका नहीं थी। पण्डित जी की प्रबल इच्छा थी कि उनकी मृत्यु गोली लगकर हो। भारतवर्ष की एक महान आत्मा विलीन हो गई और देश में किसी ने जाना भी नहीं ! आपकी विस्तृत जीवनी 'प्रभा' मासिक पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है। मैनपुरी षड्यन्त्र के मुख्य नेता आप ही समझ गए थे। इस षड्यन्त्र में विशेषताएं ये हुईं कि नेताओं में से केवल दो व्यक्तिष पुलिस के हाथ आए, जिनमें गेंदालाल दीक्षित एक सरकारी गवाह को लेकर भाग गए, श्रीयुत शिवकृष्ण जेल से भाग गए, फिर हाथ न आए। छः मास के पश्चालत जिन्हें सजा हुई वे भी राजकीय घोषणा से मुक्ते कर दिए गए। खुफिया पुलिस विभाग का क्रोध पूर्णतया शांत न हो सका और उनकी बदनामी भी इस केस में बहुत हुई।

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