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पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711
आईएसबीएन :9781613012550

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


तुम लोग सब मेरी तरफ टुकुर क्या देख रहे हो? क्या सब बहरे हो गये हैं। मेरी बात कोई नहीं मानता? तो मैं स्वयं इसे घसीट-घसीट कर इसे चौखट के बाहर छोड़ आउँगा ताकि मेरे घर की हिलती दीवारें थम जायें।

वरना अब रह ही क्या गया है?

मर गये मेरे लिए सब।

(घसीटते हुए) सब मर गये।

खोल दो यह दरवाजा। हाँ (बाहर फेंकते हुए) जाओ पापन। कुलटा। वैश्या। मरो या जियो। परन्तु एक बात याद रखना इस घर के द्वार अब तुम पर कभी नहीं खुलेंगे। कभी नहीं खुलेंगे।"

बडा़ दरवाजा बन्द हो गया।

सभी आँखें बन्द हो गई।

अंधेरा।

मौत।

बादलों के तूफान।

गरज बिजली की चमक।

गीली धरती।

दराडो़ की कोंपल।

रात का अस्तित्व....

सब खत्म। सब खत्म।

कहीं भी कुछ भी नहीं।

कुछ भी नहीं।

धरती-धरती की गोद से लिपट गई।

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