ई-पुस्तकें >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
|
1 पाठकों को प्रिय 12 पाठक हैं |
भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
मेरे साथी !
तुमने कहा था
मेरी पूजा-
करते रहोगे।
जब मर जाऊँ-
इस दुनियाँ को-
यह बतलाना-
एक थी बिरहन
आई कहाँ से?
चली कहाँ को?
रूठ चली है
दुख से,
सुख से।
मेरे साथी !
उस रास्ते को
उस अम्बर को
उस पूजा को –
उस दुनियाँ को-
उन यादों को
ले के जियोगे।
सदा जियोगे
अमर रहोगे।
सारी खुशियाँ
तुम पै निछावर !
तुम पै निछावर !
तुम पै निछावर !!!
दुख अपने-तेरे
हम लिए चले हैं।
तुम्हारी प्रियतमा
0
|