लोगों की राय
ई-पुस्तकें >>
पिया की गली
पिया की गली
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
|
पुस्तक क्रमांक : 9711
|
आईएसबीएन :9781613012550 |
 |
|
1 पाठकों को प्रिय
12 पाठक हैं
|
भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
तुम्हीं ने आज तक मुझे सदैव सभी कुछ दिया। यह जीवन दिया, यह सपने दिये –
मेरा तो रोंया-रोंया तुम्हारा ही कृतज्ञ है।
मैं तो तुम्हारे सिवाय किसी और को जानती तक नही हूं। कभी जान पाती भी नहीं हूं।
मेरी तो मां भी तुम हो, बाप भी, भाई-बहन, सखी-सहेली तुम्हीं तो हो।
जब से आँख खुली तुम्हें ही तो अपने सामने पाया--
तुम्हारी ही ममतामयी आंखें पायीं—
तुम्हारी ही गोद का प्यार औऱ लोरियों की नींद पायी।
मैं नहीं जानती किस जन्म में कब मैंने तुम्हारे लिए क्या किया था कि तुमसे इतना कुछ मिला।
मेरा तो दुनियाँ में कोई न था। लेकिन आज से पहले कभी भी तो इतना एकाकीपन अनिभव न किया था। कभी भी अपने-आपको इस तरह बेसहारा न पाया था।
कब माँ मरी, कब पिता जी का साया उठा, कब मैं इस दुनियाँ की ठोकरें सहने के लिए अकेली रह गयी, कुछ भी तो नहीं जानती।
मुझे तो शुरू से लेकर आखिर तक तुम्हारी ही याद है।
तुम्हारी ससुराल, तुम्हारा हरा-भरा घर, तुम्हारे पति, तुम्हारी सास, तुम्हारे ससुर और इन सब के मध्य तुम्हारा सदैव चमकने वाला सहनशील चेहरा !
...Prev | Next...
पुस्तक का नाम
पिया की गली
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai