ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
भारती बोली, “भले ही किसी ने भी किया हो, लेकिन मैंने नहीं किया।” फिर उसने पूरी घटना सुनाई- “दोपहर को तिवारी जब तमाशा देखने जा रहा था तो भारती की मां ने उसे देखा था। थोड़ी देर बाद नीचे के कमरे में खटखट सुनकर भारती को देखने के लिए कहा। उनकी छत के एक किनारे एक छेद है। उसी छेद से देखते ही भारती चिल्ला उठी। जो लोग बक्स तोड़ रहे थे वह जल्दी से भाग गए। तब वह नीचे आकर दरवाजे में ताला लगाकर पहरा देने लगी कि कहीं वह फिर न लौट आएं।”
अपूर्व पलंग पर बैठ गया। भारती ने कहा, “इस कमरे में आपका भोजन का तो कोई सामान नहीं है? क्या मैं कमरे में आ सकती हूं?”
“आइए,” अपूर्व ने कहा। फिर विमूढ़ की तरह उससे पूछा,”अब मुझे क्या करना चाहिए?
भारती ने कहा, “सबसे पहले यह देखना चाहिए कि क्या-क्या चीजें चोरी गई हैं।”
अपूर्व ने कहा, “अच्छा, देखिए न क्या-क्या चोरी गया है?”
भारती ने हंसकर कहा, “न तो मैंने आपके ट्रंक की चीजों को पहले कभी देखा था और न चोरी ही की है। इसलिए क्या था और क्या नहीं, मैं कैसे जान सकती हूं?
अपूर्व लज्जित होकर बोला, “आप ठीक कहती हैं। अच्छा तो फिर तिवारी को आ जाने दीजिए। वही सब कुछ जानता है,” कहकर इधर-उधर बिखरी चीजों को करुणा भरी नजरों से देखने लगा।
उसका निरुपाय चेहरा देखकर भारती हंसती हुई बोली, “वह जानता है और आप नहीं जानते। अच्छा मैं आपको सिखा देती हूं कि किस तरह जाना जाता है।” इतना कहकर फर्श पर बैठ गई और ट्रंक को पास खींचती हुई बोली, “अच्छा, पहले कपड़े-लत्ते संभाल लूं। यह क्या है? शायद मुर्शिदाबादी सिल्क का सूट है? ऐसे कितने सूट हैं?
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