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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710
आईएसबीएन :9781613014288

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


डिप्टी कमिश्नर की अदालत में मुकदमा था। वादी जोसेफ-सच, झूठ जो मन में आया, कह गया। अपूर्व ने न तो कोई बात छिपाया और न कोई बात बढ़ाकर ही कही। बाकी की गवाह उसकी लड़की थी। अदालत के सामने उस लड़की का नाम और बयान सुनकर अपूर्व खिन्न रह गया। आप किसी स्वर्गीय राजकुमार भट्टाचार्य महाशय की सुपुत्री हैं। पहले यह लोग पारीसाल में थे। लेकिन अब बंगलौर में हैं। आपका नाम मेरी भारती है। इनकी मां किसी मिशनरी के साथ बंगलौर चली आई थीं वहीं जोसेफ साहब के रूप पर मोहित होकर उनसे विवाह कर लिया। भारती ने पैतृक भट्टाचार्य नाम को निरर्थक समझकर उसे त्याग दिया और जोसेफ नाम को ग्रहण कर लिया। तभी से वह मिस मेरी जोसेफ के नाम से प्रसिद्ध हैं। न्यायाधीश के प्रश्न करने पर वह फल-फूल उपहार देने की बात से इनकार कर गई। लेकिन उसके कंठ स्वर में असत्य बोलने की घबराहट इतनी स्पष्ट हो गई कि केवल न्यायाधीश ही नहीं उसके चपरासी तक को धोखा नहीं दे सकी। फैसला उसी दिन हो गया। तिवारी छूट गया, लेकिन अपूर्व पर बीस रुपया जुर्माना हो गया। निरपराध होते हुए दंडित होने पर उसका मुंह सूख गया। रुपए देकर घर आकर देखा - दरवाजे के सामने रामदास खड़ा है। अपूर्व के मुंह से निकल पड़ा-”बीस रुपए जुर्माना हुआ रामदास। अपील की जाए?”

उत्तेजना से उसकी आवाज कांप उठी। रामदास ने उसके दाएं हाथ को थामकर हंसते हुए कहा, “बीस रुपए जुर्माने के बदले दो हजार की हानि उठाना चाहते हैं?”

“होने दो। लेकिन यह तो जुर्माना है। दंड है। राजदंड है।”

रामदास हंसते हुए बोला, 'किसका दंड? जिसने झूठी गवाही दिलाई। लेकिन इसके ऊपर भी एक अदालत है। उसका न्यायाधीश अन्याय नहीं करता। वहां आप निर्दोष हैं।”

अपूर्व बोला, “लेकिन लोग तो ऐसा नहीं समझेंगे रामदास! उनके सामने तो यह बदनामी हमेशा के लिए बनी रहेगी।”

रामदास ने कहा, “चलो नदी किनारे टहल आएं।” चलते हुए रास्ते में वह बोला, “अपूर्व बाबू, विद्या में आपसे छोटा होते हुए भी उम्र में आपसे बड़ा हूं मैं। अगर कुछ कहूं तो खयाल न करना।”

अपूर्व मौन रहा।

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