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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710
आईएसबीएन :9781613014288

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


इस मित्रहीन देश में आज उसे मित्र की अत्यंत आवश्यकता है। दोनों टहलते-टहलते डेरे के सामने पहुंचे तो तलवलकर को घर में आमंत्रित किए बिना न रह सका। ऊपर चढ़ते समय देखा कि वही ईसाई लड़की नीचे उतर रही है। उसका पिता उसके साथ नहीं था। वह अकेली थी। दोनों एक ओर हटकर खड़े हो गए। लड़की धीरे-धीरे उतरकर सड़क पर चली गई।

रामदास ने पूछा, “यह लोग तीसरी मंजिल पर रहते हैं क्या?”

“हां।”

“यह लोग भी बंगाली हैं?”

अपूर्व ने सिर हिलाकर कहा, “नहीं, देसी ईसाई हैं। सम्भव है मद्रासी, गोआनीज या और कुछ होंगे, लेकिन बंगाली नहीं हैं।”

रामदास ने कहा, “लेकिन साड़ी पहनने का ढंग तो ठीक आप लोगों जैसा ही है।”

अपूर्व ने हैरानी से पूछा, “हम लोगों का ढंग आपको कैसे मालूम?”

रामदास ने कहा, “मैंने बम्बई, पूना, शिमला में बहुत-सी बंगाली महिलाओं को देखा है। इतना सुंदर साड़ी पहनने का ढंग भारत की किसी जाति में नहीं है।”

“हो सकता है,” कहकर अपूर्व डेरे के बंद दरवाजे को खटखटाने लगा।

थोड़ी देर बाद अंदर से सतर्क कंठ का उत्तर आया, “कौन?”

“मैं हूं, मैं। दरवाजा खोलो। भय की कोई बात नहीं है,” कहकर अपूर्व हंसने लगा। यह देखकर कि इस बीच कोई भयानक घटना नहीं हुई, तिवारी कमरे में सुरक्षित है। और यह अनुभव करके उसके ऊपर से जैसे एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया।

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