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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710
आईएसबीएन :9781613014288

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


अपूर्व उठ बैठा और उस ईसाई लड़की के शब्दों को कान लगाकर सुनने की कोशिश करने लगा। तिवारी बोला, “कौन कहता है कि हमने भोजन नहीं किया? यह आप ले जाइए। बाबू सुनेंगे तो नाराज होंगे।”

अपूर्व ने धीरे-धीरे बाहर आकर पूछा, “क्या बात है तिवारी?”

लड़की जल्दी से पीछे हट गई। शाम हो चली थी लेकिन कहीं भी रोशनी नहीं जली थी। लड़की का रंग अंग्रेजों जैसा सफेद नहीं है लेकिन खूब साफ है। उम्र उन्नीस-बीस या कुछ अधिक होगी। कुछ लंबी होने से दुबली जान पड़ती है। ऊपरी होंठ के नीचे सामने के दोनों दांतों को कुछ ऊंचा न समझा जाए तो चेहरे की बनावट अच्छी है। पैरों में चप्पल, शरीर पर भड़कीली-सी साड़ी, चाल-ढाल कुछ बंगाली और कुछ पारसी जान पड़ती है। एक डाली में कुछ नारंगी, नाशपाती, दो-चार अनार और अंगूर का एक गुच्छा सामने धरती पर रखे हैं।

अपूर्व ने पूछा, “यह सब क्या है?”

लड़की ने अंग्रेजी में धीरे से उत्तर दिया - “आज हमारा त्यौहार है। मां ने भेजा है। आज तो आपका खाना भी नहीं हुआ।”

अपूर्व ने कहा, “अपनी मां को हम लोगों की ओर से धन्यवाद देना और कहना कि हमारा खाना हो गया है।”

लड़की चुप थी। अपूर्व ने पूछा, “हमारा खाना नहीं हुआ, आपको यह कैसे पता लगा?”

लड़की ने लज्जित स्वर में कहा, “इसीलिए तो झगड़ा हुआ था।”

अपूर्व बोला, “नहीं। वास्तव में हमारा खाना हो चुका है।”

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