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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।


उद्घाटन शिलान्यास रोग


मैं, एक कालेज के वार्षिक उत्सव का उद्धाटन करने गया। मैं उद्धाटन, सभापतित्व और भाषण के पैसे लेता रहा हूँ। मेरी आमदनी का लेखन के सिवा यह भी एक जरिया रहा है। समारोह के बाद मैंने प्राचार्य से कहा - इस मौसम का वह मेरा आठवाँ उद्घाटन है। आप प्राचार्य लोग मुझे पैसा देते हैं। मेरे ऊपर खर्च करते हैं। मैं जो बोलता हूँ उससे झंझट भी खड़ी होती होगी। फिर भी आप मुझ लेखक को बुलाते हैं। उन्हें क्यों नहीं बुलाते जिन्हें परंपरा से बिना खर्च बुलाते रहे हैं - मंत्रियों को, नेताओं को? प्राचार्य ने जवाब दिया - उन्हें बुलाने से उपद्रव हो जाते हैं। छात्र-छात्राएँ उन्हें न बरदाश्त करते, न उन्हें सुनना चाहते। पिछले साल इस क्षेत्र के एक मंत्री को हमने बुलाया था। मैंने छात्र नेताओं को बुलाकर समझाया कि शांति से उनका भाषण सुन लेना। हल्ला नहीं होना चाहिए। छात्र नेताओं ने कहा - सर, आप देख लीजिए। किसी छात्र का मुँह नहीं खुलेगा। कोई हूटिंग नहीं होगी। अब मंत्री महोदय ने बोलना शुरू किया। दो मिनट तक बिलकुल शांति। लड़कों ने वचन निबाहा कि मुँह नहीं खुलेगा। मैं खुश था। पर थोड़ी देर बाद किसी इशारे पर लड़के लड़कियाँ एक साथ जूतों से फर्श रगड़ने लगे। मंत्री ने हाल छोड़ दिया। मैंने उनसे क्षमा माँगी। मैंने प्राचार्य से पूछा - ऐसा क्यों होने लगा है? इनसे युवक क्यों चिढने लगे हैं?

प्राचार्य ने कहा - आप तो जानते ही हैं कि छात्र यह मानने लगे हैं कि ये लोग मिथ्याचारी होते हैं। अच्छे उपदेश देते हैं और खुद उनसे उलटे काम करते हैं। चरित्रवान बनने का उपदेश देते हैं और खुद चरित्रहीन होते हैं। देश के लिए त्याग का उपदेश देते हैं, पर खुद भ्रष्टाचार के घर भरते हैं। लड़के देश की बरबादी के लिए, अपने अनिश्चित भविष्य के लिए, मंहगाई और बेरोजगारी के लिए इन्हीं को जिम्मेदार मानते हैं। फिर ये लोग वही पिटी-पिटाई बातें हर जगह कहते हैं। न उन बातों में तत्त्व न रस। गंभीरता भी नहीं। लड़के इन्हें बरदाश्त नहीं करते। एक दूसरे प्राचार्य ने मुझे बताया कि मैंने एक मंत्री को उद्घाटन के लिए बुलाया। उन्होंने भाषण शुरू किया - छात्रों, आपने मुझे यहाँ बुलाकर जो मेरा सम्मान किया है - तभी एक कोने में बैठे तीन चार लड़के चिल्लाए - हमने नहीं बुलाया। और बाहर चले गए। मंत्री जी के चेहरे पर शिकन नहीं आई। गुल गुपाड़ा होता रहा, पर उन्होंने पूरे मन से भाषण पूरा किया। एक दूसरे प्राचार्य ने बताया पिछले साल हमने उद्घाटन के लिए शिक्षामंत्री को बुलाया। उनकी बदनामी थी कि वे स्कूलों के लिए टाटपट्टी खरीदी में बहुत पैसा खा गए थे। अखबारों में 'टाटपट्टी कांड' बहुत छपा था।

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