ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य परसाई के राजनीतिक व्यंग्यहरिशंकर परसाई
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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।
अब नीची जाति के कुछ लोग दूसरे काम भी करते हैं। कुछ शहर में कारखानों में काम करते हैं। नए लड़के शहर में काम करते हैं, तो पैंट, बुशर्ट पहिनकर गाँव आते हैं। काम के तरीके और औजारों से जाति की पहिचान बदल जाती है। इन लोगों में लोकतांत्रिक चेतना आ गई है। अपने अधिकार जानते हैं। पहिले जैसे पाँव की जूती नहीं हैं। ऊँची जाति के लोग इसे नीच जाति की ठसक कहते हैं। बरदाश्त नहीं करते ब्राह्मण-ठाकुर। नीच जाति के लड़के की बारात घोड़े पर निकली तो जाटों, यादवों ने उसे घोड़े से उतार दिया और बारात की पिटाई कर दी। गाँवों में जातिगत संगठन और परस्पर द्वेष बहुत बढ़ गया है।
हथियार बंद रहते हैं। हर जाति की लड़ाकू जातिगत हिंसा बहुत आम हो गई है। पूरे गाँव साफ कर दिए जाते हैं। उत्तरप्रदेश के कुम्हेर में जाटों द्वारा नीच जाति (चमारों) पर हमला दो महीने बाद भी चर्चा में है। सबसे खतरनाक है जाति आधारित राजनीति। लोकतंत्र और लोकशिक्षण के बढ़ते-बढ़ते इस तरह की राजनीति को खत्म हो जाना था। पर उलटा हुआ। जाति आधारित राजनीति बहुत बढ़ गई है। जातियों के संगठन हैं खास राजनेता के पीछे। जातियों की सशस्त्र फौजें हैं। राजनेता जाति के नाम पर अपनी पार्टी के लिए समर्थन माँगते हैं। मत माँगते हें। जातियों का राज स्थापित करना चाहते हैं। चौधरी देवीलाल का 'अजगर' का राजनैतिक सिद्धांत मशहूर है। अ यानी अहीर, ज यानी जाट, ग यानी गूजर, र यानी राजपूत। ये चार जातियाँ अहीर, जाट, गूजर, राजपूत मिल कर राजनैतिक दल बनाएँ तो देश पर राज कर सकती हैं। जातिगत हिंसा और जातियों के अपराधी, गिरोह सबसे अधिक बिहार में है। हमारी निर्वाचन प्रक्रिया, हमारी लोकतंत्र की भावना को काफी हद तक नुकसान पहुँचाया है जातिगत राजनीति ने। जीवन के दूसरे क्षेत्रों में भी जातिवाद बढ़ा है। हम संकीर्ण से संकीर्णतर होते गए हैं। दफ्तरों में, धंधों में, संस्थाओं में सब जगह जातिवाद है। शिक्षा ने इसे कम नहीं किया, बढ़ाया ही है। सर्वोच्च शिक्षा संस्थान विश्वविद्यालयों में घृणित जातिवाद है। उत्तरभारत के विश्वविद्यालयों में ब्राह्मण और कायस्थ गुट परस्पर युद्ध-मुद्रा में रहते हैं।
मैंने सामाजिक हलचल से बात शुरू की थी। ऐसी सामाजिक हलचल जो बुरी परंपरा मिटाए, नई परंपरा शुरू करे। अपने विगत में जो त्याज्य है उसका त्याग कर समाज में सुधार करे और उसे अग्रगामी बनाए। ऐसी कोई हलचल नजर नहीं आती।
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