लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> परिणीता

परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708
आईएसबीएन :9781613014653

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

366 पाठक हैं

‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


कुछ देर में रसोई-घर की दालान से उठकर बरामदा लाँघकर आंगन में जाने पर शेखर ने देखा, अँधेरे में दहलीज के भीतर किवाड़े की आड़ में ललिता खड़ी है। धरती में सिर रखकर प्रणाम करने के बाद खड़ी होकर: वह बिलकुल ही शेखर के वक्षस्थल के निकट खिसक आई, और मुँहृ उठा कर चुपचाप जैसे किसी आशा से खड़ी रही। उसके उपरान्त पीछे हटकर उसने अत्यन्त धीमे स्वर में पूछा-मेरी चिट्ठी का जवाब क्यों नहीं दिया?

शेखर ने कहा- कहाँ, मुझे तो कोई चिट्ठी नहीं मिली,- क्या लिखा था?

ललिता- बहुत सी बातें थीं। खैर, जाने दो। सब हाल तो तुम सुन ही चुके हो। अब बताओ, मुझे क्या आज्ञा देते हो?

शेखर ने अचरज प्रकट करते हुए कहा- मेरी आज्ञा! मेरी आज्ञा किसलिए? मेरी आज्ञा से क्या होगा?

ललिता शंकित हो उठी, शेखर की ओर दृष्टि करके पूछा- 'किसलिए?'

शेखर- और नहीं, तो क्या! मैं किसे आज्ञा दूँगा?

''मुझे दो, और किसे दोगे-और-किसे दे सकते हो?

''तुम्हें ही क्यों आज्ञा दूँगा? और, देने पर भी तुम उसे सुनोगी ही क्यों भला?' शेखर का स्वर गम्भीर, किन्तु कुछ करुण था।

अब तो ललिता मन में बहुत ही डरी। उसने एक बार फिर निकट खिसक आकर रुआसी आवाज में कहा-जाओ, हटो, इस समय मुझे दिल्लगी अच्छी नहीं लगती। मैं तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ, बताओ, क्या होगा? मुझे तो रात को नींद ही नहीं पड़ती।

शेखर- डर काहे का है?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book