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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708
आईएसबीएन :9781613014653

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


मनोरमा वोली- अच्छा पूछूँगी। रुपये देकर अगर तू एक गरीब परिवार का कुछ उपकार कर सके तो अच्छी बात है।

जरा रुक कर मनोरमा ने हँसकर फिर पूछा- अच्छा, बता तो सही, तुझे ही क्यों इस तरह आपसे उपकार करने की चटापटी हो रही है गिरीन्द्र?

'चटापटी कुछ भी नहीं है दीदी, दुःख-कष्ट पड़ने पर एक आदमी को दूसरे आदमी की सहायता करनी ही चाहिए-- यही मनुष्य का धर्म है''- कहकर ही लज्जित मुख नीचा किये गिरीन्द्र वहाँ से चल दिया। मगर दरवाजे तक जाकर फिर लौट पड़ा, और आकर बैठ गया।

बहन ने पूछा- तू तो लौटकर फिर बैठ गया!

गिरीन्द्र ने हँसकर कहा-- इतनी करुण-कथा जो तुम मुझे सुनाती रही हो सो, मुझे तो जान पड़ता है, शायद इसमें सत्य की मात्रा बहुत थोड़ी है।

मनोरमा ने विस्मय के साथ कहा- क्यों?

गिरीन्द्र ने कहा- उस घर की ललिता को तो मैंने जिस तरह लापरवाही के साथ रुपये-पैसे खरचते देखा है, वह किसी दुखी-दरिद्र का काम नहीं। दीदी, अभी उस दिन की बात है। हम सब लोग थिएटर देखने गये थे। ललिता नहीं गई थी, फिर भी अपनी बहन के हाथ दस रुपये खर्च के लिए उसने भेजे थे। चारु से पूछ लो, ललिता जिस तरह खर्च करती रहती है, उससे जान पड़ता है कि महीने में 20-25 रुपये से कम में उसका काम न चलता होगा। मनोरमा को इस पर विश्वास न हुआ।

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