ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
दो
रेनु डाकिए के हाथ से तार का लिफाफा लेकर बाग प्लेटफार्म की ओर दौड़ी जहाँ रायसाहब, मालकिन और संध्या बैठे शाम की चाय पी रहे थे। रेनु के हाथ में लिफाफा देखकर संध्या ने पूछा, 'कौन आया है?'
'पोस्टमैन - पापा का तार आया है।' लिफाफा पापा के हाथ में थमाते हुए रेनु एक ही सांस में सब कह गई।
सबकी दृष्टि रायसाहब के मुख पर जम गई, जो तार देखकर पीला पड़ चुका था। तार पकड़ते ही उसके मुख पर प्रसन्नता की लहर दौड़ गई और साथ ही सबकी रुकी सांस चलने लगी। मालकिन ने झट पूछा-
'किसका है?'
'बेला का - कल सांझ की गाड़ी से आ रही है।' तार संध्या के हाथ में देते हुए रायसाहब ने प्लेट से एक लड्डू उठाकर मुँह में डाल लिया। रेनु तो सुनकर नाचने ही लगी-’कल मेरी दीदी आएगी' और नाचते-नाचते पड़ोस में चली गई। बेला संध्या से छोटी तथा रेनु से बड़ी थी। रायसाहब जी दिल्ली से घर बदलकर बंबई आए तो उन्हें बेला को विवश होकर होस्टल में छोड़ना पड़ा। बी.ए. का अंतिम वर्ष था और बंबई विश्वविद्यालय की पढ़ाई दिल्ली से बिल्कुल भिन्न थी। कल वह परीक्षा समाप्त होने के पश्चात् पहली बार बंबई आ रही थी।
सायंकाल जब आनंद उसके यहाँ आया तो रेनु ने सर्वप्रथम उसे यही समाचार सुनाया।
आनंद ने बातों ही बातों में संध्या से पूछा-'कैसी है तुम्हारी बहन?'
'जैसे हमारी नई गाड़ी!' संध्या नें दबी मुस्कान में उत्तर दिया।
'वाह, यह गाड़ी व बेला की तुलना अनोखी है।'
'तो देख लेना - जैसे हमारी गाड़ी लेटेस्ट मॉडल की है वैसे ही मेरी बहन फैशन में तो सारे कॉलेज में प्रथम है।'
'तब तो परीक्षा में भी 'प्रथम' आएगी।' आनंद की बात सुनकर संध्या की हँसी छूट गई। आनंद ने धीमे स्वर में कहा-’जान पड़ता है कि बेला से तुम्हें कुछ डर है?'
'भला वह क्यूँ?'
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