ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
'करना ही पड़ता है। अच्छा छोड़ो भी, क्या विषय छेड़ दिया, आओ तुम्हें मोटर दिखाऊँ।'
आनंद बेला को बारी-बारी शोरूम की सब गाड़ियाँ दिखाने लगा। बेला किसी गाड़ी का हॉर्न बजाकर, किसी के स्टेयरिंग पर बैठकर, किसी की सीट पर उछलती-मुस्कराती अपने मन का उल्लास प्रकट कर रही थी।
स्टूडी-बेकर की एक गाड़ी में बैठकर बेला ने आनंद का हाथ खींचते हुए कहा-'मुझे तो यह गाड़ी अति प्रिय है।'
'तो खरीद लो।' आनंद ने खिड़की के निकट मुँह ले जाते हुए कहा। 'यदि लेने वाले के पास इस समय पैसे न हों तो?'
'तो अपनी कोई बहुमूल्य वस्तु गिरवी रख दें।'
'परंतु उसका मूल्य पाने वाला जौहरी कहाँ मिलेगा?'
'हम भी सुनें वह रत्न है कौन-सा?'
'मेरा हृदय?'
बेला की यह बात सुनकर आनंद खिलखिलाकर हँसने लगा। थोड़े समय के लिए वह भूल गया कि वह वहाँ का मैनेजर है। फिर उसने धीमें स्वर में बेला से कहा-
'जो हृदय एक गाड़ी के लिए गिरवी रखने को तैयार हो जाता हो उसकी निजी वास्तविकता क्या है?'
बेला ने उत्सुकतापूर्वक ऊपर देखा। 'एक छकड़ा जो समय की गति में चलते-चलते बेकार हो चुका है।' बेला यह उत्तर पाकर जल-भुन गई। वह व्यंग्य उसके मन को छलनी कर गया, पर क्रोध को पी गई। पर आनंद उसके मुख पर उद्विग्नता के चिह्न देखकर मुस्करा पड़ा और उसे खींचते हुए अपने कमरे की ओर ले गया।
थोड़े समय पश्चात् दोनों ऑफिस में बैठे चाय पी रहे थे। बेला की दृष्टि में अब वह पहले की चंचलता और नटखटता न थी। अब वह गंभीर मुद्रा में थी। अपने सौंदर्य और हाव-भाव से वह चाहे उसके शरीर में एक फुरहरी-सी भर देती, किंतु बातों में उसे पराजित न कर पाई।
जब इन्हीं बातों में बेला ने मोटर चलाना सीखने की अभिलाषा प्रकट की तो आनंद ने खंडाला से लौटकर सिखाने का वचन दिया।
'खंडाला! वहाँ क्या है?'
'माता-पिता - नगर के जीवन से दूर पर्वतों की घाटी में।'
'क्या करते हैं उजाड़ में वे?'
'खंडाला के छोटे से स्टेशन पर स्टेशन मास्टर हैं।'
'सुना है सैर-सपाटे के लिए सुंदर स्टेशन है।'
'बहुत सुंदर बेला, कहने को तो बंबई और खंडाला में केवल अस्सी मील का अंतर है, परंतु वहाँ जाकर यूँ अनुभव होता है मानों कोई बंबई से सैकड़ों मील दूर आ गया हो।'
'काश! मैं भी यह देख सकती।'
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