ई-पुस्तकें >> नदी के द्वीप नदी के द्वीपसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।
भीड़ के साथ सिनेमाघर से बाहर निकला, तब चन्द्रमाधव की मानसिक स्थिति में विशेष परिवर्तन नहीं हुआ था। एक खीझ अब भी उसके मन में भरी थी; पर खीझ जैसे केवल विमुख करती है, वैसा भाव उसमें नहीं था। खीझ में एक अन्तर्धारा किसी गोपन आशंका की थी; मानो एक चिन्ता उसे खा रही हो कि कुछ जल्दी करना है नहीं तो न जाने क्या एक शोचनीय बात हो जायेगी। न उस शंकनीय बात को, न उस काम को जो करना होगा, वह कोई नाम दे सकता था, या देना चाहता था; पर खीझ के भीतर से जैसे इस चाबुक की प्रेरणा उसे हाँक रही थी। उसने रिक्शा नहीं लिया, पैदल ही तेज चाल से घर की ओर चल पड़ा। सिनेमा से छूटी हुई भीड़ क्रमशः फैलती और छँटती गयी। नरहीवाले मोड़ पर बचे-खुचे लोग भी मुड़ गये और वह रास्ते पर अकेला रह गया। हवा बहुत तेज चल रही थी, धूल उस इलाके में अधिक नहीं फिर भी कभी-कभी कोई नुकीला कण आकर उसके गाल पर चिनगी-सा चुभ जाता। हवा इतनी तेज न होती तो शायद इस रास्ते पर नींबू के फूलों का सौरभ पाया जा सकता, पर अब तो कोई गन्ध नहीं है, उसी के कपड़ों में से सिगरेट के सीले हुए धुएँ की महक आ रही है जो सिनेमाघरों की विशेष देन है। दूसरों की धूमिल साँसों की गन्ध...बहुत से लोग इसी से तंग आकर सिगरेट पीना शुरू कर देते होंगे। दूसरों की गन्ध से हरदम दम घुटता रहे, इससे अच्छा है कि स्वयं अपना दम घोंट लो। अपने ज़हर...नहीं, वह भुवन को निमन्त्रित करेगा ही; और इतना ही नहीं, रेखा को लिखेगा कि वह भी भुवन को निमन्त्रित करे, दोनों के निमन्त्रण से भुवन अवश्य आ जाएगा, और फिर रेखा को आना ही होगा। उसी के निमन्त्रण पर भुवन आवे और फिर वह रह जाये यह कैसे हो सकता है? भीतर से रेखा इन औपचारिक बातों को जितना ही नगण्य मानती है, बाहर से उनके निर्वाह में उतनी ही सतर्क रहती है...।
घर पहुँच कर उसने सब खिड़कियाँ बन्द कीं; सहसा स्तब्ध हो गये वातावरण में उसने कपड़े बदले, बालों को उँगलियों से थोड़ा मसल कर, हाथों में थोड़ा कोलोन-जल डाल कर माथे पर और कनपटी पर मल लिया, फिर कंघी से बाल सँवारे और टेबल लैम्प जला कर पत्र लिखने बैठ गया।
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