लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> नदी के द्वीप

नदी के द्वीप

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :462
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9706
आईएसबीएन :9781613012505

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

390 पाठक हैं

व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।


“चलिए, हम सब-के-सब कृतज्ञ हैं।” रेखा मुस्करा दी। “अब चलें-राह में मेरा सामान लेते चलेंगे।”

भुवन अपने कमरे की ओर सामान उठाने चला। पीछे उसने सुना, रेखा पूछ रही है, “आपके मित्र को इलाहाबाद में बहुत ज़रूरी काम है? या घर पहुँचने की जल्दी है-बीवी”

वह सहसा ठिठक गया। चन्द्र ठठा कर हँसा। “अरे, भुवन तो निघरा है, उसे कहीं पहुँचने की जल्दी नहीं है।” भुवन आगे बढ़ गया। रेखा ने फिर कहा, “अकेले हैं, तभी लीक पकड़ कर चलते हैं।”

इस वाक्य का कुछ भी अभिप्राय भुवन नहीं समझ सका - कोई भी अर्थ न उस पर लागू होता था, न रेखा या चन्द्र पर ही किसी तरह लगाया जा सकता था। चन्द्र ने फिर क्या कहा, यह उसने नहीं सुना।

दस बजे रात को गाड़ी लखनऊ से छूटी थी। रेखा के डिब्बे के सामने ही उसने चन्द्रमाधव से विदा ली थी, और उसे वहीं छोड़कर अपने डिब्बे की ओर चला गया था। रेखा का डिब्बा आगे की ओर था; गाड़ी जब चली तब प्लेटफार्म पर खड़ा चन्द्र फिर उसके सामने आ गया और उसने हाथ हिलाकर फिर विदा माँग ली।

उसके बाद अगर वह ऊँघता रहता और प्रतापगढ़ तक फिर रेखा को देखने न जाता, तो कोई असाधारण बात न होती - वैसा कुछ उससे अपेक्षित नहीं हो सकता था। बल्कि प्रतापगढ़ में भी अगर न उतरता, तो बहुत अधिक चूक न होती; चाहे रेखा ही उसे वहाँ देखकर नमस्कार करती हुई चली जाती। रेखा की यात्रा का या उस यात्रा में उसकी सुरक्षा या सुविधा का कोई दायित्व भुवन पर कैसे था?

पर गाड़ी पैसेंजर थी, हर स्टेशन पर रुकती थी। ऊँघने की चेष्टा बेकार थी - यों भुवन ने उधर ध्यान नहीं दिया। पहले ही स्टेशन पर गाड़ी रुकी तो वह रेखा के डिब्बे पर पहुँच गया; दरवाज़े के पास ही रेखा बैठी थी और उसकी आँखें बिल्कुल सजग थीं और शायद बाहर अन्धकार की ओर देखती रही थीं!

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book