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नदी के द्वीप

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :462
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9706
आईएसबीएन :9781613012505

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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।

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चन्द्र द्वारा रेखा को :

प्रिय रेखा जी,
भुवन का पत्र आया है। कुल्लू तो वह नहीं जा सकेगा, कश्मीर जा रहा है कुछ रिसर्च के सिलसिले में, पर उसने लिखा है कि अगर हम लोग कश्मीर में कहीं मिल सकें तो वह कुछ दिन हमारे साथ रहना चाहेगा। क्यों न वैसा ही प्रोग्राम बनाया जाये? कश्मीर चलें; वहीं भुवन साथ हो लेगा और वहाँ से फिर उसे आगे जहाँ जाना होगा चला जाएगा। आप चाहे वहीं रह जाइएगा चाहे लौट आइएगा। यह भी हो सकता है कि हम सब दिल्ली मिलें और वहीं से साथ चलें। मैंने छुट्टी ले ली है, अब आप अगर न चलेंगी तो मुझे बहुत-बहुत सख्त सदमा पहुँचेगा।

मेरे ख़याल में सबसे अच्छा होगा कि हम लोग मिलकर कुछ पक्का प्रोग्राम बना लें, और भुवन को सूचना दे दें। उसने भी यही लिखा है। आप एक-आध दिन फिर लखनऊ आ जाइये न-या मुझे लिखें, मैं प्रतापगढ़ आ जाऊँ? दो घंटे का तो रास्ता है। प्रतीक्षा में,

आपका
चन्द्र

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