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कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

अब तो पाठक समझ ही गए होंगे कि यह औरत कालिन्दी है और यह बिलकुल बखेड़ा इसी का मचाया हुआ है, मगर यह मर्द कौन है? इसका हाल आगे मालूम होगा। जब तक ये दोनों उस पीपल के नीचे पहुंच कर घोड़ों पर सवार हों तब तक आइए हम लोग बीरसेन की खबर लें और मालूम करें कि बेहोश रनबीरसिंह और जख्मी दीवान साहब को उसी तरह छोड़ वे कहां गए या किस काम में उलझे।

शहर के पिछली तरफ शहर से बाहर निकल जाने के लिए एक छोटा-सा दरवाजा था, जो चोर दरवाजे के नाम से मशहूर था। इस दरवाजे के बाहर निकलते ही जल से भरी हुई खाई मिलती थी और समय पर काम देने के लिए छोटी-सी किश्ती भी बराबर इस जगह रहा करती थी। इस छोटे मगर मजबूत दरवाजे की चौकसी बीस सिपाहियों के साथ चंचलसिंह नामी एक राजपूत करता था।

बीरसेन ने यह सोचकर कि महारानी को ले जाने वाले दुश्मनों को किले से बाहर हो जाने का सुबीता इस चोर दरवाजे के और कोई नहीं हो सकता सीधे इसी तरफ का रास्ता लिया। रास्ते ही में बीरसेन का मकान भी था। यह फौज के सेनापति थे इसलिए इनका मकान आलीशान था और उसके चारों तरफ सैकड़ों फौजी सिपाही रहा करते थे मगर इस समय इन्होंने अपने मकान की तरफ कुछ ध्यान न दिया और सीधे चोर दरवाजे की तरफ बढ़ते चले गए।

अपने मकान से कुछ ही आगे बढ़े थे कि सामने से एक आदमी आता हुआ दिखाई पड़ा जो इनको अपनी तरफ लपकता आता देखकर सहमकर अपने को छिपाने की नीयत से एक मकान की आड़ हो गया। बीरसेन ने तो उसे देख ही लिया था, उसे दीवार की आड़ में हो जाते देख इनको शक पैदा हुआ और इन्होंने उसके पास पहुंचकर ललकारा।

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