ई-पुस्तकें >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
रनबीर-हां-हां, जरूर मैं ऐसा लिख दूंगा! जब तुम मेरे साथ इतनी नेकी करोगे कि मेरी चिट्ठी का जवाब मंगा दोगे तो क्या मंं तुमको अपने भाई के बराबर न समझूंगा?
जसवंत–(चिल्लाकर) मगर यह कैसे मालूम होगा कि महारानी ही ने इस पत्र का जवाब दिया है? क्या जाने तुम जाल बनाकर किसी गैर से चिट्ठी का जवाब लिखवा के ला दो, तब?
बालेसिंह–(गुस्से में आकर) बेइमानों को ऐसी ही सूझती है! हम लोग क्षत्रिय वंश में पैदा होकर जाल करने का नाम भी नहीं जानते। जरूर इस पत्र का उत्तर महारानी अपने हाथ से लिखेंगी और अपनी खास लौंडी के हाथ भेंजेगी, क्योंकि इनके लिए वह अपनी जान भी देने को तैयार है। क्या तुमने महारानी की सूरत देखी है?
जसवंत–हां, मैं उन्हें देख चुका हूं, वह इतनी मुरौवतवाली नहीं...!
बालेसिंह–(हंसकर) बस-बस, अब मुझे पूरा विश्वास हो गया। ऐसा तो कोई दुनिया में है ही नहीं जो उसे देखे और अपनी नीयत साफ बनाए रहे!
रनबीर–(बालेसिंह से) इन सब बातों में देर करने की क्या जरूरत है, आप मेरे ऊपर कृपा कीजिए और चिट्ठी लिखने का सामान मंगाइए, मैं अभी लिखे देता हूं!
बालेसिंह ने अपने एक आदमी को भेजकर कलम-दावात तथा कागज मंगवाया और रनबीरसिंह के सामने रखकर कहा, ‘‘लीजिए लिखिए।’’ रनबीरसिंह खत लिखने बैठे।
अह..., जिसके इश्क में रनबीरसिंह की यह दशा हुई, इतनी आफतें उठाईं आज उसी को पत्र लिखने बैठे हैं मगर क्या लिखें? क्या कहकर लिखे? कौन-सी शिकायत करें? इन्हीं बातों को घड़ी-घड़ी सोच-सोच रनबीरसिंह को कंप हो रहा था, आंखें डबडबा आती थीं, लिखनेवाला कागज आंसुओं से भीग जाता था, बड़ी मुश्किल से कई दफे कागज बदलने के बाद यह लिखा–‘‘मेरे लिए तुमने जो कुछ सोचा मुनासिब ही था, जिसका पहला हिस्सा ठीक भी कर चुके। मगर अफसोस उसका आखिरी हिस्सा अभी तक तय न हुआ। जसवंत की मदद तक न की! बालेसिंह की खातिरदारी अभी तक जान बचाए जा रही है। तुम्हारा रनबीर।’’
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