लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

266 पाठक हैं

रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

हुक्म पाकर लौंडी जसवंतसिंह के पास गई और महारानी का संदेशा दिया। जिसे सुन बड़ी देर तक जसवंतसिंह चुप रहे इसके बाद जवाब दिया, ‘‘अच्छा, आज तो नहीं मगर कल मैं जरूर रनबीरसिंह के छुड़ाने की फिक्र में जाऊंगा।’’

जसवंतसिहं ने यह कह तो दिया कि रनबीरसिंह को छुड़ाने के लिए मैं कल जाऊंगा, मगर कल तक राह देखना और बेकार बैठे रहना भी उसने मुनासिब न समझा क्योंकि वह दुष्ट यही सोच रहा था कि जहां तक जल्द हो सके बालेसिंह से मेल करके रनबीरसिंह को मरवा देना चाहिए। आखिर उससे न रहा गया और शाम होते ही महारानी से हुक्म ले बालेसिंह की तरफ रवाना हुआ।

महारानी ने अपने लायक और ईमानदार दीवान को बुलाकर कहा, ‘‘आजकल मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती, कुछ-न-कुछ बीमार रहा करती हूं, मेरा इरादा है कि महीने-पंद्रह दिन तक बाग में जाकर रहूं और हवा-पानी बदलूं, तब तक राज का कोई काम न करूंगी। लीजिए यह मोहर अपनी आपको देती हूं, जब तक मेरी तबीयत बखूबी दुरुस्त, न हो जाए तब तक आप राज का काम ईमानदारी के साथ कीजिए।’’

दीवान ने पर्दे की तरफ हाथ जोड़कर अर्ज किया, ‘‘अगर सरकार की तबीयत दुरुस्त नहीं है तो जरूर कुछ दिन बाग में रहना चाहिए, ताबेदार से जहां तक होगा ईमानदारी से काम करेगा। ईश्वर चाहेगा तो किसी काम में हर्ज न होगा। ऐसा ही कोई मुश्किल काम आ पड़ेगा तो सरकारी हुक्म लेकर करूंगा।’’

महारानी ने कहा, ‘‘नहीं, जब तक मैं बाग से वापस न आऊं तब तक मुझे किसी काम के लिए मत टोकना, जो मुनासिब मालूम हो करना।’’

दीवान साहब ‘बहुत अच्छा, जो हुक्म सरकार का’ कह और सलाम कर रवाना हुए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book