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ई-पुस्तकें >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

जसवंतसिंह ताज्जुब से उस तरफ देखने लगा बल्कि कुछ देरी तक देखता रहा लेकिन फिर महारानी न दिखाई पड़ीं हां, लौंडियां जितनी उस वक्त उस जगह खड़ी थीं ज्यों की त्यों जसवंतसिंह को घेरे खड़ी रहीं।

अब तो जसवंत के दिल में बड़े-बड़े खयाल पैदा होने लगे। महारानी क्यों चली गई? जाती वक्त मुझसे कुछ कहा भी नहीं? कुछ रंज तो नहीं हो गईं! इस तसवीर की निंदा करने से कुछ गुस्सा तो नहीं आ गया। वह तो इस डाकू से अपना रंज और रनबीरसिंह से मुहब्बत दिखाती थीं! फिर यह क्या हो गया? हाय, क्या भोली सूरत है! रनबीरसिंह का इस पर आशिक होना ठीक ही था मगर वह पत्थर की मूरत इतनी खूबसूरत कहां जितनी यह खुद है! वाह वाह, मेरी भी किस्मत कितनी अच्छी थी, जो अपनी आंखों से इनकी मोहिनी मूरत देख ली। कंबख्त रनबीरसिंह की ऐसी किस्मत कहां? वाह क्या मजे में सामने बैठी बातचीत कर रही थीं, यकायक न मालूम क्यों उठकर चली गईं और अभी तक न लौटीं। मेरा तो यही जी चाहता है कि दिन-रात बैठे-बैठे इनकी सूरत ही देखा करूं, रनबीरसिंह की खोज में कहां टक्करें मारता फिरूंगा! यह तो अपनी किस्मत है, जो जिसके नसीब में लिखा है होगा ही, किसी की मदद से क्या होता जाता है? मगर अफसोस तो यही है कि यह रनबीरसिंह पर आशिक है। कोई तरकीब ऐसी करनी चाहिए। जिससे यह रनबीरसिंह को भूल जाय और मेरे साथ ब्याह करने पर राजी हो जाय। क्या मैं किसी तरह रनबीरसिंह से खूबसूरती में कम हूं? बात यह है कि इसने पहले किसी तरह रनबीर को देख लिया है या उसकी तसवीर ही देख ली है और इसी से उसके ऊपर जान दे बैठी है। रनबीर के बदले में पहले मुझे देखती तो मेरी ही किस्मत जाग जाती। खैर, रनबीर तो इस वक्त जहन्नुम में जा पड़ा है, किसी तरह न छूटे सो ही ठीक है, आखिर दस-पांच दिन में यह मेरे साथ मिल ही जाएगी, मगर जब तक रनबीर की उम्मीद है, तब तक यह मुझे न कबूल करेगी! अगर उस डाकू ने रनबीर को मार डाला हो तो बड़ी खुशी की बात है, नहीं तो जिस तरह हो सके उससे मिलकर रनबीर को खत्म करा देना चाहिए, तब मेरा काम होगा, ऐसी खूबसूरत औरत भी मिलेगी और इस राज्य का मालिक भी बनूंगा।

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