लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

266 पाठक हैं

रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

 

तैंतीसवां बयान

इस विचित्र ढंग से अपने पिता से मिलने का जैसा आनन्द रनबीरसिंह और कुसुम कुमारी को हुआ इसका लिखना कठिन है। आश्चर्य नहीं कि हमारे पाठकों को भी दोनों राजर्षि राजाओं के उद्योग और प्रारब्ध का हाल पढ़ कर कुछ आनन्द मिला हो। अब इस किस्से की समाप्ति में थोड़ा-सा हाल लिखना और बाकी रह गया। वह यह है कि घण्टे भर बाद मन्मथसिंह के घर की औरतें ऊपर बुलाई गई और कुसुम कुमारी बड़े प्रेम से उनसे मिली मगर इन औरतों को रनबीरसिंह के अतिरिक्त दोनों राजाओं और गुरु महाराज का परिचय नहीं दिया गया और वे सब इसी समय अच्छी तरह से अपने घर पहुंचा देने के लिए सरदार चेतसिंह के हवाले की गईं उन्हें केवल इतना ही मालूम हुआ कि राजा रनबीरसिंह ने हम लोगों को छुड़ाया। रनबीरसिंह ने बहुत उद्योग किया कि उनके पिता इन्द्रनाथ अब उनके पास ही रहें मगर उन्होंने न माना और गुरु महाराज ने भी कहा कि अब ये राज्य करने और तुम्हारे पास रहने लायक न रहे क्योंकि ये संन्यास ले चुके हैं, शहर में रहने से कोई काम इनसे ऐसा हो ही जाएगा जिससे यह पालकी होंगे और धर्म में बाधा पड़ेगी, मगर तुम्हें इन सब बातों का खयाल न करके अपना राज्य करना ही होगा और इन्द्रनाथ को हम इसी समय यहां से ले जाएंगे।

लाचार रोते और सिसकते हुए रनबीर को उनकी आज्ञा माननी ही पड़ी और उसी समय अपने चेले बाबाजी और इन्द्रनाथ को लेकर गुरु महाराज जिस राह से आए थे उसी राह से रवाना हो गए।

दूसरे दिन राजा नारायणदत्त चोर दरवाजे के पहरेदार चंचलसिंह को प्राणदण्ड की आज्ञा देने के बाद रनबीरसिंह की इच्छानुसार तेजगढ़ की राजधानी रामसिंह के सुपुर्द करके कुसुम कुमारी रनबीरसिंह दीवान साहब सरदार चेतसिंह और उनके लड़के बालों को साथ लेकर बिहार चले गए। इसके महीने भर के बाद वे रनबीरसिंह को राजतिलक देकर अपने मित्र इन्द्रनाथ के अनुगामी और पक्षपाती होकर जंगल की तरफ पधार गए और फिर उन दोनों मित्रों का हाल किसी को मालूम न हुआ और कुसुम कुमारी तथा रनबीरसिंह को यह दुःख सहना ही पड़ा। साल भर के बाद दीवान साहब को मालूम हुआ कि बालेसिंह के लश्कर से भागी हुई कालिन्दी को उन्हीं के दो नौकरों ने नदी पार उतारने के बहाने से डोंगी पर चढ़ाकर गिरफ्तार कर लिया था और जब उसे घसीट कर दीवान साहब के पास लाने लगे तो कालिन्दी ने आत्महत्या कर ली थी। मगर इस खबर से दीवान साहब को किसी तरह का रंज न हुआ और वह बहुत दिनों तक जीते रहकर कुसुम कुमारी और रनबीरसिंह के सुख भोगने का आनन्द लेते रहे।

 

समाप्त

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book