ई-पुस्तकें >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
यह खुशखबरी सुनकर गुरु महाराज बहुत प्रसन्न हुए, रामसिंह को तो कई बातें समझा-बुझाकर विदा किया और मुझे यह आज्ञा दी कि रनबीरसिंह को इस ढब से मेरे पास ले आओ जिसमें किसी को कानों-कान खबर न हो। हम सरदार चेतसिंह के नाम पत्र लिख देते हैं, वह इस काम में तुम्हारी सहायता करेगा बल्कि एक पत्र और लिए जाओ वह भी सरदार चेतसिंह को देना और कह देना कि अपने किसी विश्वासपात्र के हाथ राजा नारायणदत्त के पास भेजवा दें।
गुरु महाराज की आज्ञा पाकर मैं यहां आया और सरदार चेतसिंह से मिलकर तथा सब हाल कहकर गुरु महाराज की चिट्ठी दी। सरदार चेतसिंह ने उसी समय अपने भतीजे को राजा नारायणदत्त के पास रवाना किया और रनबीरसिंह को यहां से ले जाने में मुझे सहायता दी। (उस गड़हे की तरफ इशारा करके जिस राह से ये लोग इस कमरे में आए थे) इसी राह से मैं इस कमरे में आया था, उस समय रनबीरसिंह और बीरसेन दोनों आदमी इस कमरे में सोये हुए थे और दोनों के सिरहाने पानी का भरा हुआ एक चांदी का बर्तन रखा हुआ था, मैंने दोनों के सिरहाने जाकर पानी के बर्तनों में एक प्रकार की दवा डाल दी, जो जख्मों को फायदा पहुंचाने के साथ-ही-साथ गहरी नींद में बेंहोश कर देने की शक्ति रखती थी और उलटे पैर यहां से लौट गया तथा यह रास्ता बन्द करता गया। दो घंटे के बाद जब मैं फिर इस कमरे में आया तो पानी का बर्तन देखने से मालूम हो गया कि दोनों ने इसमें से थोड़ा-थोड़ा जल पीया है, बस मैं बेफिक्री के साथ सरदार चेतसिंह की सहायता से रनबीरसिंह को यहां से उठा ले गया और जब अपने स्थान के पास पहुंचा तो एक पेड़ के नीचे इन्हें रख तथा इनके जख्मों पर अनूठी बूटी का रस लगाकर अलग हो गया।’’
पाठक महाशय, अब तो आपको मालूम हो गया होगा कि यह साधु बाबा वही हैं जिनका हाल हम ऊपर पचीसवें बयान में लिख आए हैं और यह साधु महाशय अपने साथ रनबीर को लेकर जिस बाबाजी के पास गए थे या जिसने रनबीर की सूरत बदलकर डाकुओं की तरफ रवाना किया था वह गुरु महाराज ही थे जिनका हाल छब्बीसवें बयान में लिखा जा चुका है।
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