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कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

रनबीरसिंह आगे बढ़कर दीवान साहब से साहबसलामत करने के बाद बीरसेन से मिले और तब मोहब्बत भरी एक गहरी निगाह कुसुम कुमारी पर डाली, उधर उसने भी अपने धड़कते हुए कलेजे को शान्ति देकर प्रेम पूरित दृष्टि से रनबीर को देखा और लज्जा से आंखें नीची कर ली।

इस समय का कौतुक देखकर दीवान साहब और बीरसेन तो हैरान थे ही मगर कुसुम कुमारी के दिल का क्या हाल था सो हमारे पाठक स्वयं अनुमान कर सकते हैं।

अपने मित्र साधु से जो वास्तव में रनबीर के पिता थे मिलने के बाद राजा नारायणदत्त तीसरे साधु से गले मिले और तब रनबीर के पिता कुसुम कुमारी की तरफ बढ़े। राजा नारायणदत्त ने कुसुम से कहा, ‘‘यह रनबीरसिंह के पिता है, इनके पैरों पर गिरो।’’

कुसुम कुमारी रनबीरसिंह के पिता के पैरों पर गिर पड़ी जिन्होंने बड़े प्रेम से उठाकर उसका सर छाती से लगाया और कहा, ‘‘बेटी कुसुम, आज का दिन हम लोगों को देखना नसीब होगा इसका तो गुमान भी न था, हां इतना जानते थे कि हम लोगों की वास्तविक प्रसन्नता में कोई बाधा नहीं डाल सकता, अच्छा बैठो और हम लोगों का जीवन चरित्र सुनो।’’ इतना कहकर इन्द्रनाथ (रनबीर के पिता) दीवान साहब और बीरसेन की तरफ घूमे और कुशलमंगल पूछने लगे, दीवान साहब और बीरसेन भी इन्द्रनाथ के पैरों पर गिरे और दीवान साहब ने कहा, ‘‘मुझे पूरा विश्वास था कि जो कुछ आपने कहा है वही होगा परन्तु आज के दिन की खबर न थी और न यही जानता था कि आज का दिन हम लोगों के लिए इतनी बड़ी खुशी का होगा।’’

हम ऊपर लिख आए हैं कि छत के नीचे से सीढ़ियां चढ़कर पांच आदमी निकले जिनमें से चार आदमियों का हाल तो हम लिख चुके हैं मगर पांचवे आदमी का परिचय अभी नहीं दिया गया, वहां पांचवां आदमी वही सरदार चेतसिंह था जिसका बयान पहले आ चुका है, जो बहुत से फौजी सिपाहियों को लेकर रनबीरसिंह की खोज में उस पहाड़ी के ऊपर गया था जिस पर कुसुम कुमारी और रनबीरसिंह की मूरत बनी हुई थी।

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