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कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

उन औरतों में से जो अभी तक हाथ जोड़े खड़ी थीं, एक ने सिर उठाया और नौजवान की तरफ देखकर पूछा, ‘‘क्या हम लोगों के लिए जो कुछ हुक्म हुआ था वह बहाल ही रहा?’’

इसके जवाब में नौजवान ने एक लम्बी सांस लेकर कहा, ‘‘अफसोस! क्या करूं लाचार हूं!!’’

उस औरत ने फिर पूछा, ‘‘क्या कुसुम कुमारी के लिए भी वही हुक्म दिया गया है?’’

अबकी दफे जवान ‘‘हां!’’ करके रह गया!

अभी तक तो रनबीरसिंह बड़ी सावधानी से इन सभी की बातें सुन रहे थे मगर आखिरी दो बातों ने उन्हें भी उदास करके तरद्दुद में डाल दिया। वह सोचने लगे कि ये औरतें कौन हैं। यह नौजवान कहां से आया। इन औरतों से और कुसुम कुमारी से क्या निस्बत या इस नौजवान से और कुसुम कुमारी से क्या सम्बन्ध। और इस भयानक जंगल में कुसुम कुमारी पर हुकूमत करने वाला कौन है और कहां रहता है। आह, इस जगह उन्हें एक दूसरे की तरद्दुद ने घेर लिया और वे मन ही मन सोचने लगे, ‘अब मुझमें इतनी ताकत न रही कि इन बातों का पता लगाए बिना आगे बढ़ूं। खैर, देखना चाहिए अब ये औरतें कहां जाती हैं और यह नौजवान इन सभी के साथ कैसा बर्ताव करता है!!’’

उन सभी में फिर कुछ बातें न हुई, हां उस नौजवान ने उन पांचों की तरफ देखकर केवल इतना कहा, ‘‘अच्छा मेरे पीछे-पीछे चले आओ।’’ नौजवान ने धीरे-धीरे घने जंगल की तरफ घोड़ा बढ़ाया। सिपाही मशालची और औरतें पीछे-पीछे जाने लगीं। रनबीर से भी रहा न गया, उन सभी के कुछ आगे बढ़ जाने पर वे भी पेड़ से उतरे और छिपते हुए उन सभी के पीछे-पीछे रवाना हुए।

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