लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

266 पाठक हैं

रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

बीरसेन–उसका इन्तजाम मैं कर चुका हूं। आज किसी समय वह फौज लड़ाई के मैदान में अवश्य दिखाई देगी और जो कुछ आने से रह जाएगी वह दो दिन के अन्दर पहुंच जाएगी।

कुसुम–अच्छा तो इस समय किले के अन्दर जो फौज है उसे लेकर तुम इसी समय उनकी मदद के लिए चले जाओ, बस इज्जत बचाने का यही समय है, क्योंकि बालेसिंह की बेशुमार फौज इस समय मुकाबले में है। यदि हो सके तो अपने मालिक को बचाकर किले के अन्दर चले जाओ फिर हमारी फौज आ जाएगी तो देखा जाएगा।

बीरसेन–जी हां, मैं अब एक सायत यहां न ठहरूंगा, जो कुछ फौज मौजूद है उसे लेकर अभी जाता हूं।

दिन पहर भर से ज्यादे चढ़ आने पर भी अभी तक किले के सामने वाले मैदान में लड़ाई हो रही है। बालेसिंह की बहादुरी ने भी बहुतों को चौपट किया मगर रनबीरसिंह की चुस्ती चालाकी और दिलावरी ने उसे चौंधिया दिया था। इस समय वह सोच रहा था कि जसवंतसिंह के हाथ से जख्मी होकर रनबीरसिंह बहुत दिनों तक बेकाम पड़े रहे और बहुत सुस्त हो गए हैं, तिस पर उनकी हिम्मत ने आज पंजे में आई हुई कुसुम को छुड़ा ही लिया, यदि वे भले चंगे होते तो न मालूम क्या करते!

घण्टे भर तक फौजी बहादुरों में लड़ाई होती रही और इस बीच में बालेसिंह की बहुत सी फौज वहां आकर इकट्ठी हो गई। जिस समय किले में की बची हुई फौज को साथ लेकर बीरसेन मैदान में आ पहुंचा उस समय मार काट का सौदा बहुत ही बढ़ गया और बीरसेन ने भी खोलकर अपनी बहादुरी का तमाशा बालेसिंह को दिखा दिया। रनबीरसिंह और बीरसेन अपने बहादुरों को लेकर बालेसिंह को फौज में घुस गए। उस समय मालूम होता था कि इस लड़ाई का फैसला आज हो ही जाएगा। इसी समय बीरसेन की मातहतवाली फौज भी आती हुई दिखाई पड़ी जिससे रनबीरसिंह के पक्ष वालों का दिल और भी बढ़ गया और वे लोग जी खोल कर जान देने और लेने के लिए तैयार हो गये।

लड़ाई का जौहर दिखाता हुआ हमारा बहादुर रनबीर ऐसी जगह जा पहुंचा जहां से बालेसिंह थोड़ी ही दूर पर दिखाई दे रहा था। उस समय रनबीरसिंह के जोश का कोई हद न रहा और वे बालेसिंह के पास पहुंचने का उद्योग करने लगे। बालेसिंह ने भी उन्हें देखा मगर पास पहुंचकर उनका मुकाबला करने की हिम्मत न हुई। इस समय रनबीरसिंह और बालेसिंह दोनों ही घोड़ों पर सवार थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book