ई-पुस्तकें >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
हरीसिंह–(चौंककर) पहाड़ी के ऊपर जा रहे थे?
जसवंत-जी हां, पहाड़ी के ऊपर जा रहे थे।
हरीसिंह–गजब हो गया! भला उन सभी ने वहां से किसी को गिरफ्तार भी किया?
जसवंत–हां, पहाड़ी के ऊपर से एक दिलावर खूबसूरत जवान को गिरफ्तार कर ले गए, जिसे मैंने कल उस बाग में देखा था।
हरीसिंह–यह किस वक्त की बात है?
जसवंत–आज ही शाम की।
हरीसिंह–आप उस पहाड़ी के ऊपर क्यों गए थे?
जसंवत–इसी तरह! जी में आया कि ऊपर एकांत जगह होगी, चल के धूनी जगावेंगे, मगर ऊपर जाकर और ही कैफियत देखी, इससे लौट आया।
हरीसिंह–भला आप उस बेचारे के बारे में और भी कुछ जानते हैं, जिसे दुष्ट सवार गिरफ्तार करके ले गए हैं।
इस सवार (हरीसिंह) की बातचीत से जसवंतसिंह को विश्वास हो गया कि यह हम लोगों का दोस्त है दुश्मन नहीं, इसके साथ मिलने में कोई हर्ज नहीं होगा। यह सोच उन्होंने जवाब दिया, ‘‘हां, मैं उस बेचारे के बारे में बहुत कुछ जानता हूं, कई दिनों तक साथ रह चुका हूं।’’
सवार–अगर आप घोड़े पर चढ़ सकते हैं तो, आइए, मेरे साथ चलिए, किसी तरह उन्हें कैद से छुड़ाना चाहिए।
जसवंतसिंह–बहुत अच्छा, मैं आपके साथ चलता हूं।
उस सवार ने एक दूसरे सवार की तरफ देखकर कहा, ‘‘तुम घोड़े पर से उतर जाओ, बाबाजी को चढ़ने दो।’’
सवार ‘बहुत अच्छा’, कह के उतर गया। बाबाजी (जसवंतसिंह) उछलकर उस घोड़े पर सवार हो गए और बराबर घोड़ा मिलाए हुए तेजी के साथ उस पहाड़ी की तरफ रवाना हुए।
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