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खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702
आईएसबीएन :9781613013397

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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य

सात


अपने मित्र को ठिकाने लगाने और दिन भर के काम से निपटाने के बाद लाला घसीटामल ने इन संदूकों को देखना उचित समझा। जैसे ही पहली सन्दूक खोली तो चमाचम स्वर्ण-मुद्राओं को देखता ही रह गया। काफी देर तक पहली सन्दूक की अशर्फियों को उलट- पुलट कर देखते रहने के बाद उसने दूसरा सन्दूक खोला- 'हे भगवान, इस अथाह सम्पत्ति को मेरा मित्र कहाँ से का लाया है।' मन-ही-मन यों कहकर उसने रत्न-जटित आभूषणों को उलटना शुरू कर दिया। एक-एक आभूषण उसे कल्पना-लोक में ऊँचे से ऊँचा उड़ाये ले जा रहा था। वह उन्हें देखने में इतना तल्लीन हो गया कि उसकी आँखों से नींद भी किनारा कर गई।

उसका ध्यान तो तब भंग हुआ, जव अपनी हवेली के चारों ओर उसे बच्चों की 'ठाँ-ठाँ' सुनाई देने लगी। उसका पहरेदार जोर से चिल्लाया- 'डाकू गब्बरसिंह ने हमला कर दिया है - सावधान.......!' पहरेदार की इस चेतावनी के साथ ही डाकुओँ की एक गोली ने उसकी आवाज सदैब के लिए छीन ली।

लाला कल्पना-लोक की रंग-रेलियाँ छोड़कर यथार्थ के धरातल पर उतरा तो चारों ओर से गब्बरसिंह के गिरोह से घिरा हुआ था। अचानक आई उस विपत्ति के कारण वह इतना हड़बड़ा गया कि लालायन को आबाज देता हुआ अपने कमरे के भीतर भागा।

लालायन अभी सोयी न थी। लाला की बौखलाहट भरी आवाज सुनते ही वह भी घबड़ा गई। उसने व्यग्रता से पूछा- 'क्यों क्या हुआ?'  'सेठानी, गब्बरसिंह!' लाला ने इतना कहा और इसके साथ ही मूर्च्छित होकर गिर पड़ा।

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