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खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702
आईएसबीएन :9781613013397

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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य

पाँच


निर्धनता तो अभिशाप है ही, किन्तु धनाढ्य होना भी महाव्याधि है। यह अनुभव उन दोनों को उस रात हुआ। शानदार होटल के गुदगुदे गद्दों पर भी उन्हें एक क्षण भी नींद नहीं आई थी। उन्होंने सवेरे जल्दी ही होटल छोड़ दिया। वे यथाशीघ्र अपने यहाँ पहुँचकर उस धन को ठिकाने लगाना चाहते थे।

माधब अपने मन में तरह-तरह के मनसूबे बाँध रहा था। डॉ. साहब भी शायद इसी उधेड़बुन में डूबे हुए थे। कहानी, चुटकुले सुनाना तो दूर, माधव का बोल भी नहीं फूट पा रहा था। और डा. साहब को भी उस वक्त उसके चुटकुलों की जरूरत न थी।

माधव सोच रहा था- 'मजा आ गया! आधे करोड़ का स्वामी बन जाऊँगा! बन क्या जाऊँगा-बन ही गया। दूसरे ही क्षण उसने सोचा- 'डा. साहब इतनी मोटी रकम को कहाँ खर्च करेंगे! यदि सारा धन मुझे ही मिल जाता तो मैं करोड़पति हो जाता।'

उसका यह सोचना था कि करोड़पति शब्द हथौड़ा बनकर उसके मस्तिष्क पर चोट करने लगा।

करोड़पति! करोड़पति!!..   

'यदि डा. साहब को रास्ते से हटा दिया जाय तो अब भी करोड़पति बना जा सकता है.... मन में कोने में छिपे हुए राक्षस ने उसके कान में कहा।

दूसरे ही क्षण वह सोचने लगा- 'छि:-छि:, मुझ जैसा पापी कोई न होगा, मैं भी कैसा नीच हूँ। डा. साहब जैसे शुभचिन्तक के लिए कैसे बुरे विचार मन में ला रहा हूँ!' यह उसकी पवित्र अन्तरात्मा की आवाज थी।

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