लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> खजाने का रहस्य

खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702
आईएसबीएन :9781613013397

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

152 पाठक हैं

भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य

माधव डाक-बँगले के बाहर प्रकृति की छटा देखने में मग्न था। डॉ. साहब की पहली आवाज उसका ध्यान भंग करने में सफल न हो सकी। भास्करजी को दूसरी बार कुछ जोर से आवाज लगानी पड़ी। तब कहीं जाकर माधव की विचार-तन्द्रा भंग हुई। वह बड़ी तेजी से दौड़ता हुआ डी. साहब के पास पहुँचा और बोला- 'आज्ञा सर!'  'माधवजी, इस ग्रन्थ के अवलोकन से मुझे एक नये रहस्यपूर्ण स्थान का पता लगा है।' भास्करजी ने कहा।

'वह कौन-सा स्थान है सर, वहाँ का रहस्य क्या है?' एक साथ ही दो प्रश्न कर डाले माधव ने।

'वह स्थान है - बिन्ध्याचल का एक मन्दिर।'

'और वहाँ का रहस्य?'

'उस मन्दिर में स्थापित देवी की एक प्रतिमा।'

'मैं समझा नहीं सर!'

'किन्तु मैं अच्छी तरह समझ गया हूँ, माधवजी।'

'यदि आप उचित समझें तो मुझे भी बता दें।' प्रसन्नता में डूबकर माधव बोला।

'उस मूर्ति के नीचे भी एक खजाना होने का संकेत मुझे मिला है।'  'यह तो शुभ संकेत है, सर!'

'किन्तु मैं उसे अपने अभियान की श्रंखला में जोड़ना नहीं चाहता।' डा. भास्कर ने कहा।

'क्या मतलब सर!' माधव चौंका।

'हाँ, माधवजी, मेरा अनुमान यह है कि खजाना अधिक गहराई में नहीं होगा। इसलिए क्यों न इसकी खुदाई का कार्य गोपनीय ढंग से केवल मैं और तुम ही कर लें?'

'यह कैसे सम्भव होगा, डा. साहब।'

'हाँ, कार्य कठिन अवश्य है, लेकिन असम्भव नहीं। इस कार्य को पूरा करना ही होगा।

'लेकिय सर! आप तो...........'

'जो आप कहना चाहते हैं, वह मैं भी समझ रहा हूँ माधवजी।' माधव की बात को बीच में से ही काटकर डा. साहब बोले- 'मुझे अपने लिए तो धन की अधिक चिन्ता नहीं है, किन्तु आप तो गृहस्थ हैं, आपको तो धन चाहिए ही। यदि वहाँ खजाना मिल जाता है तो उसको मैं और आप आधा-आधा बाँट लेंगे।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book