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खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702
आईएसबीएन :9781613013397

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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य

जब सुअर 5-6 मोडी-मोटी जड़ों को काटने में सफल हो गये तो उनकी चिन्ता बढ़ी। वे सोचने लगे - यदि इसी गति थे सुअरों ने जड़ों का काटना जारी रखा तो वे अन्तत: पेड़ को गिराने में सफल हो ही जायेंगे।

माधब उस कठिन समय में भी मुस्कराकर बोला- 'सर, आपने सुअरों को मगरमच्छ का कलेवा करते देखा ही था, मुझे तो ऐसा आभास होता है कि हमारी भी यही दशा होगी। आपकी श्याम चिड़िया, जो यात्रा प्रारम्भ करने के समय दाहिने थी, उसका प्रभाव उल्टा ही होगा।, माधव की बात सुनकर डा. भास्कर ठठाकर हँस पड़े और बोले-  'माधबजी, आप घबडाइये नहीं, सुअर हमारा बाल भी बाँका नहीं कर पायेंगे। हमें शीघ्र ही कोई-न-कोई दैवी-सहायता अवश्य मिलेगी।' इसी तरह बातों से मन बहलाते हुए उन्हें कुछ समय और बीत गया, तब तक शाम का धुँधलका शुरू हो गया था। उन्होंने सोचा- कम्बख्त सुअर रात में तो पेड़ का पीछा छोड़ेंगे ही - यह सोचकर उन्हें जीवन की कुछ आशा बंधी।

उन्हें घोर आश्चर्य तो तब हुआ, जब रात के दस बज जाने पर भी अविराम गति से सुअर अपना काम करते रहे। उनके उत्साह में रंचमात्र भी कमी नहीं आई थी। दिन भर की यात्रा के कारण उनकी आँखों में नींद तैरने लगी थी, किन्तु एक तो वे पेड़ पर थे और दूसरे नीचे साक्षात् मृत्यु मुँह बाये खड़ी थी, तो सोया कैसे जा सकता था!

उन्हें पेड़ पर बैठे-बैठे ही पूरी रात बीत गई। जागरण, भूख, भय और मौत की आशंका ने उन्हें अधमरा कर डाला। परन्तु वे विवश थे, निरीह और निरुपाय थे।

जैसे ही सूर्य की पहली किरण पृथ्वी पर उतरी कि उन्हें बस्ती की ओर से कुछ शोर उठता हुआ सुनाई दिया। शोर सुअरों ने भी सुना, किन्तु उन्होंने अपना काम चालू रखा। डा. साहब और माधव ने शोर की तरफ नजरें गड़ा दी। कुछ ही देर में उन्हें १०- १5 आदमी हाथों में बन्दूक सँभाले अपनी ओर आते हुए दिखाई दिए।


डॉ. साहब ने माधव से कहा- 'माधवजी, परमात्मा ने सहायता भेंज दी है।'

माधव जो भय के मारे पीला पड़ चुका था, डा. साहब के इन शब्दों ने उसमें भी जान फूंक दी।

इतनी देर में वे बन्दूकधारी समीप आ गये और उन्होंने सुअरों को गोलियों का निशाना बनाना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में सब सुअरों का सफाया हो गया, किन्तु घोर आश्चर्य की बात यह रही कि अन्तिम सुअर भी अपनी अन्तिम साँस तक पेड़ की जड़ खोदता ही रहा।

सब सुअरों को मार लेने के बाद ग्रामीणों ने डॉ. साहब और उनके साथी को पेड़ से नीचे उतारा। पेड़ से उतरने के बाद ग्रामीणों ने उनका परिचय पूछा और घनघोर जंगल में आने का कारण भी।

डा. साहब ने कहा- 'यह सब तो आपको बाद में बतायेंगे, सब से पहले तो हमारे सोने की व्यवस्था करिये।'

ग्रामीणों ने डा. साहब को उनकी जीप तक पहुँचाया। उन्हंे यह देखकर प्रसन्नता हुई कि सुअरों ने जीप को बिल्कुल भी हानि नहीं पहुँचाई थी। वह बिल्कुल सुरक्षित थी।

गाँव वाले उनको अपने साथ गाँव में ले गये और उनकी यात्रा का उद्देश्य जानकर उनका भरपूर स्वागत-सत्कार किया।

अगले दिन ग्रामबासियों से बिदा लेकर वे पुन: यात्रा को चल-दिये और अन्तत: अजयगढ़ नामक दुर्ग पर जा ही पहुँचे।

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