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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


लेकिन हमें कुछ भी पता नहीं है! हम सिर्फ बटन दबाना और बुझाना जानते हैं और उसीसे हमने समझ लिया है कि हम बिजली के जानकार हो गए हैं। सेक्स के संबंध में पूरी जिदगी बीत जाने के बाद भी आदमी इतना ही जानता है कि बटन दबाना और बुझाना, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं! लेकिन चूंकि यह भ्रम है कि हम सब जानते हैं; इसलिए इस संबंध में कोई शोध कोई खोज, कोई विचार, कोई चिंतन का कोई उपाय नहीं है। और इसी भ्रम के कारण कि हम सब जानते हैं हम किसी से न कोई बात करते हैं न विचार करते हैं न सोचते हैं! क्योंकि जब सभी को सब पता है तो जरूरत क्या है?
और मैं आपसे कहना चाहता हूं कि जीवन में और जगत् में सेक्स से बड़ा न कोई रहस्य है और न कोई गुप्त और गहरी बात है।
अभी हमने अणु को खोज निकाला है। जिस दिन हम सेक्स के अणु को भी पूरी तरह जान सकेंगे, उस दिन मनुष्य-जाति ज्ञान के एक बिल्कुल नए जगत् में प्रविष्ट हो जाएगी। अभी हमने पदार्थ की थोड़ी-बहुत खोज-बीन की है और दुनिया कहा-से-कहा पहुंच गयी। जिस दिन हम चेतना के जन्म की प्रक्रिया और कीमिया को समझ लेंगे, उस दिन हम मनुष्य को कहां-से-कहां पहुंचा देंगे, इसको आज कहना कठिन है। लेकिन एक बात निश्चित कही जा सकती है कि काम की शक्ति और काम की प्रक्रिया जीवन और जगत् में सर्वाधिक रहस्यपूर्ण, सर्वाधिक गहरी, सबसे ज्यादा मूल्यवान बात है और उसके संबध में हम बिल्कुल चुरा है। जो सर्वाधिक मूल्यवान है, उसके सबंध में कोई बात भी नहीं को जाती! आदमी जीवन-भर संभोग से गुजरता है और अंत तक भी नहीं जान पाता कि क्या था संभोग।
तो जब मैंने पहले दिन आपसे कहा कि शून्य का-अहंकार-'शून्यता का, विचार-शून्यता का अनुभव होगा, तो अनेक मित्रों-को यह बात अनहोनी आश्चर्यजनक लगी है। एक मित्र ने लौटते ही मुझे कहा यह तो मेरे ख्याल में भी न था। लेकिन ऐसा हुआ है। एक बहन ने आज मुझे आकर कहा, लेकिन मुझे तो इसका कोई अनुभव रही है। आप कहते हैं तो इतना मुझे ख्याल आता है के मन थोड़ा शांत और मौन होता है, लेकिन मुझे अहंकार-शून्यता का या किसी और गहरे अनुभव का कोई भी पता नहीं।

हो सकता हैं अनेको को इस संबंध में विचार मन में उठा हो। उस सबंध मे थोड़ी-सी बात और गहराई में स्पष्ट कर लेनो जरूरी है।
पहली बात, मनुष्य जन्म के साथ ही संभोग के पूरे विज्ञान को जानता हुआ पैदा नहीं होता है। शायद पृथ्वी पर बहुत थोड़े-से लोग अनेक जीवन के अनुभव के बाद सं भोग की पूरी-की-पूरी कला और पूरी-की-पूरी विधि और पूरा शास्त्र जानने में समर्थ हो पाते हैं। और ये ही वे लोग हैं जो बह्मचर्य को उपलब्ध हो जाते हैं। क्योंकि जो व्यक्ति संभोग की पूरी बात को जानने में समर्थ हो जाता है, उसके लिंग संभोग व्यर्थ हो जाता है। वह उसके पार निकल जाता है अतिक्रमण कर जाता है! लेकिन इस संबंध में कुछ बहुत स्पष्ट बातें नहीं कही गयी हैं।

एक बात, पहली बात स्पष्ट कर लेनी जरूरी है वह यह कि भ्रम छोड़ देना चाहिए कि हम पैदा हो गए है, इसलिए हमे पता है-क्या है काम क्या है संभोग। नहीं, पता नहीं है। और नहीं पता होने के कारण जीवन पूरे समय कम और सेक्स मे उलझा रहता है और व्यतीत होता है।

मैंने आपसे कहा, पशुओं का बंधा हुआ समय है। उनकी ऋतु हैं। उनके मौसम हैं। आदमी का कोई बंधा हुआ समय नहीं है। क्यों? पशु शायद मनुष्य से ज्यादा सं भोग की गहराई में उतरने मे समर्थ है और मनुष्य उतना भी समर्थ नहीं रह गया है!
जिन लोगों ने जीवन के इन तलों पर बहुत खोज को है और गहराइयों में गए हैँ और जिन लोगों ने जीवन के; बहुत-से अनुभव संग्रहीत किए हैं उनको यह जानना, यह सूत्र उपलब्ध हुआ है कि अगर संभोग एक मिनट तक रुकेगा तो आदमी दूसरे दिन फिर संभोग के लिए लालायित हो जाएगा। अगर तीन मिनट तक रुक सके तो एक सप्ताह तक उसे सेन्सर की वह याद भी नहीं आएगी। और अगर सात मिनट तक रुक सके तो तीन महीने के लिए सेक्स से इस तरह मुक्त हो जाएगा कि उसकी कल्पना में भी विचार प्रविष्ट नहीं होगा। और अगर तीन घंटे तक रुक सके तो जीवन-भर के लिए मुक्त हो जाएगा! जीवन मैं उसको कल्पना भी नहीं उठेगी।
लेकिन सामान्यतः क्षण-भर का अनुभव है मनुष्य का। तीन घंटे की कल्पना करनी भी मुश्किल है। लेकिन मैं आपसे कहता हूं कि तीन घंटे अगर संभोग की स्थिति में, उस समाधि की दशा में, व्यक्ति रुक जाए तो एक संभोग पूरे जीवन के लिए सेक्स से मुक्त करने के लिए पर्याप्त है। इतना तृप्ति पीछे छोड़ जाता है-इतना अनुभव, इतना बोध छोड़ जाता है कि जीवन-भर के लिए पर्याप्त हौ जाता है। एक संभोग के बाद व्यक्ति ब्रह्मचर्य को उफलब्ध हो सकता है।

लेकिन हम तो जीवन-भर संभोग के बाद भी उपलब्ध नहीं होते। क्या है? बूढ़ा हो जाता है आदमी, मरने के करीब पहुंच जाता है और संभोग की कामना से मुक्त नहीं होता! संभोग की कला और-संभोग के शास्त्र को उसनै समझा नहीं है। और न कभी किसी ने समझाया है, न विचार किया है। न सोचा है और न बात का है। कोई संवाद भी नहीं हुआ जीवन में--कि अनुभवी लोग उस पर संवाद करते और विचार करते। हम बिल्कुल पशुओं से भी बदतर हालत पर हैं उस स्थिति में हैं। आप कहेंगे कि एक क्षण से तीन घंटे तक से भोग की दशा ठहर सकती है लेकिन कैसे?

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