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संभोग से समाधि की ओर...
उस आदमी को ऊपर बुलाया और पूछा कि इन पंखों में क्या खूबी है? दाम क्या हैं
इन पंखों के? उस पंखेवाले ने कहा कि महाराज! दाम ज्यादा नही हैं। पंखे को
देखते हुए दाम बहुत कम हैं सिर्फ सौ रुपए का पंखा है।
सम्राट् ने कहा, सौ रुपए! यह दो पैसे का पंखा जो बाजार में जगह-जगह मिलता है
और सौ रुपए दाम! क्या है इसकी खूबी?
उस आदमी ने कहा खूबी! यह पंखा सौ वर्ष चलता है। सौ वर्ष के लिए गारंटी है। सौ
वर्ष से कम में खराब नहीं होता है।
सम्राट् ने कहा, इसको देखकर तो ऐसा ही लगता है कि सप्ताह भी चल जाए पूरा तो
मुश्किल है। धोखा देने की कोशिश कर रहे हो? सरासर बेईमानी, और वह भी सम्राट्
के सामने।
उस आदमी ने कहा, आप मुझे भली-भांति जानते हैं। इसी गलियारे में रोज पंखे
बेचता हूं। सौ रुपए दाम हैं इसके और सौ वर्ष न चले तो जिम्मेदार मैं हूं। रोज
तो नीचे मौजूद होता हूं। फिर आप सम्राट् हैं आपको धोखा देकर जाऊंगा कहां?
वह पंखा खरीद लिया गया। सम्राट् को विश्वास तो न था, लेकिन आश्चर्य भी था कि
यह आदमी सरासर झूठ बोल रहा है, किस बल पर बोल रहा है। पंखा सौ रुपए में खरीद
लिया गया उससे कहा गया कि सातवें दिन तुम उपस्थित हो जाना।
दो-चार दिन मैं ही पंखे की डंडी बाहर निकल गई। सातवें दिन तो यह बिल्कुल
मुर्दा हो गया। लेकिन सम्राट् ने सोचा, शायद पंखेवाला आएगा नहीं। लेकिन ठीक
समय पर, सातवें दिन वह पंखेवाला हाजिर हो गया और उसने कहा : 'कहो महाराज!'
उन्होंने कहा : 'कहना नहीं है', यह पंखा पड़ा हुआ है टूटा हुआ। यह सात दिन में
ही यह गति हो गई। तुम कहते थे, सौ वर्ष चलेगा। पागल हो या धोखेबाज? क्या हो?
उस आदमी ने कहा कि 'मालूम होता है आपको पंखा झलना नहीं आता। पंखा तो सौ वर्ष
चलता ही। पंखा तो गारंटीड है। आप पंखा झलते कैसे थे?'
सम्राट् ने कहा और भी सुनो, अब मुझे यह भी सीखना पड़ेगा कि पंखा कैसे किया
जाता है।
उस आदमी ने कहा कृपा करके बताइए कि पंखे की गति सात दिन में ऐसी कैसे बना दी
आपने? किस भांति पंखा किया है?
सम्राट् ने पंखा उठाकर करके दिखाया कि इस भांति मैंने पंखा किया है। तो उस
आदमी ने कहा कि 'समझ गया भूल। इस तरह पंखा नहीं किया जाता।'
सम्राट् ने कहा 'और क्या रास्ता है पंखा झलने का?'
उस आदमी ने कहा कि 'पंखा पकड़िए सामने और सिर को हिलाइए। पंखा सौ वर्ष चलेगा।
आप समाप्त हो जाएंगे, लेकिन पंखा बचेगा। पंखा गलत नहीं है। आपके झलने का ढंग
गलत है।'
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