ई-पुस्तकें >> कबीरदास की साखियां कबीरदास की साखियांवियोगी हरि
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जीवन के कठिन-से-कठिन रहस्यों को उन्होंने बहुत ही सरल-सुबोध शब्दों में खोलकर रख दिया। उनकी साखियों को आज भी पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है, मानो कबीर हमारे बीच मौजूद हैं।
हीरा तहां न खोलिये, जहं खोटी है हाटि।
कसकरि बांधो गाठरी, उठि करि चालौ बाटि।। 16।।
जहां खोटा बाजार लगा हो, ईमान-धरम की जहां पूछ न हो, वहां अपना हीरा खोलकर मत दिखाओ। पोटली में कसकर उसे बन्द कर लो और अपना रास्ता पकड़ो। (हीरा से मतलब है आत्मज्ञान से। 'खोटी हाट' से मतलब है अनधिकारी लोगों से, जिनके अन्दर जिज्ञासा न हो।)
हीरा परा बजार में, रहा छार लपिटाइ।
ब तक मूरख चलि गये, पारखि लिया उठाइ।। 17।।
हीरा योंही बाजार में पड़ा हुआ था - देखा और अन-देखा भी, धूल-मिट्टी से लिपटा हुआ। जितने भी अपारखी वहां से गुजरे, वे यों ही चले गये। लेकिन जब सच्चा पारखी वहां पहुंचा तो उसने बड़े प्रेम से उसे उठाकर गंठिया लिया।
सब काहू का लीजिए सांचा सबद निहार।
पच्छपात ना कीजिए कहै 'कबीर' विचार।। 18।।
कबीर खूब विचारपूर्वक इस निर्णय पर पहुंचा है कि जहां भी, जिसके पास भी सच्ची बात मिले, उसे गांठ में बांध लिया जाय पक्ष और अपक्ष को छोड़कर।
क्या मुख लै बिनती करौं, लाज आवत है मोहिं।
तुम देखत औगुन करौं, कैसे भावों तोहि।। 19।।
सामने खड़ा हूं तेरे, और चाहता हूं कि विनती करूं। पर करूं तो क्या मुंह लेकर, शर्म आती है मुझे। तेरे सामने ही भूल-पर-भूल कर रहा हूं और पाप कमा रहा हूं। तब मैं कैसे, मेरे स्वामी, तुझे पसन्द आऊंगा?
सुरति करौ मेरे साइयां, हम हैं भौजल मांहि।
आपे ही बहि जाहिंगे, जौ नहिं पकरौ बाहिं।। 20।।
मेरे साईं! हम पर ध्यान दो, हमें भुला न दो। भवसागर में हम डूब रहे हैं। तुमने यदि हाथ न पकड़ा तो बह जायंगे। अपने खुद के उबारे तो हम उबर नहीं सकेंगे।
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